अक्रोध परमानन्द नित्यानन्दराय।
अभिमान-शून्य निताई नगरे बेड़ाई॥
अधम पतित जीवेर द्वारे-द्वारे गिया।
हरिनाम महामन्त्र देन बिलाइया॥
यारे देखे तारे कहे दन्ते तृण धरि'।
आमारे किनिया लह भज गौरहरि॥
एत बलि नित्यानन्द भूमे गड़ि याय।
सोनार पर्वत येन धूलाते लोटाय॥
हेन अवतार यार रति ना जन्मिल।
लोचन बले सेई पापी एल और गेल॥
क्रोध से रहित एवं परमानन्द से पूर्ण श्रीनित्यानन्द प्रभु, अभिमान शून्य होकर नगर में घूम रहे हैं।
वे सभी जीवों के घर-घर में जाकर हरिनाम महामन्त्र करने के लिये अनुरोध कर रहे हैं।
जिसको भी वे देखते हैं, उसे बड़ी ही दीनता के साथ विनती करते हैं कि आप श्रीकृष्ण का, श्रीगौरहरि का भजन करो। इसके बदले में आप मुझे खरीद लो।
इतना कहकर श्रीनित्यानन्द प्रभु भगवद्-प्रेम के आनन्द में विभोर होकर, ज़मीन पर लोट-पोट होने लगते हैं। उस समय ऐसा लगता है कि जैसे सोने का पर्वत ज़मीन पर लोट-पोट हो रहा हो।
इस प्रकार के अवतार में जिसकी श्रद्धा, जिसका प्रेम नहीं हुआ, श्रीलोचन दास ठाकुरजी कहते हैं कि उसकी ज़िन्दगी तो बेकार है। वह पापी तो समझो, संसार में आया और ऐसे ही, बेकार में ही चला गया।
अभिमान-शून्य निताई नगरे बेड़ाई॥
अधम पतित जीवेर द्वारे-द्वारे गिया।
हरिनाम महामन्त्र देन बिलाइया॥
यारे देखे तारे कहे दन्ते तृण धरि'।
आमारे किनिया लह भज गौरहरि॥
एत बलि नित्यानन्द भूमे गड़ि याय।
सोनार पर्वत येन धूलाते लोटाय॥
हेन अवतार यार रति ना जन्मिल।
लोचन बले सेई पापी एल और गेल॥
क्रोध से रहित एवं परमानन्द से पूर्ण श्रीनित्यानन्द प्रभु, अभिमान शून्य होकर नगर में घूम रहे हैं।
वे सभी जीवों के घर-घर में जाकर हरिनाम महामन्त्र करने के लिये अनुरोध कर रहे हैं।
जिसको भी वे देखते हैं, उसे बड़ी ही दीनता के साथ विनती करते हैं कि आप श्रीकृष्ण का, श्रीगौरहरि का भजन करो। इसके बदले में आप मुझे खरीद लो।
इतना कहकर श्रीनित्यानन्द प्रभु भगवद्-प्रेम के आनन्द में विभोर होकर, ज़मीन पर लोट-पोट होने लगते हैं। उस समय ऐसा लगता है कि जैसे सोने का पर्वत ज़मीन पर लोट-पोट हो रहा हो।
इस प्रकार के अवतार में जिसकी श्रद्धा, जिसका प्रेम नहीं हुआ, श्रीलोचन दास ठाकुरजी कहते हैं कि उसकी ज़िन्दगी तो बेकार है। वह पापी तो समझो, संसार में आया और ऐसे ही, बेकार में ही चला गया।
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