
परमपूज्यपाद श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी, गुरुमहाराज जी कहते हैं कि यह जो ग्राह है, वो माया है। और यह जो गजेन्द्र है, वो एक प्राणी अथवा जीव है। जीव को माया रूपी ग्राह ने पकड़ा हुआ है। जीव रूपी हाथी अपने आप को मगरमच्छ से छुड़ाने की कोशिश करता है। उसके बच्चे, अन्य प्राणी भी उसकी सहायता करते हैं, किन्तु असफल रहते हैं। कुछ होता न देख, जीव फिर अकेला ही जूझता है। हम चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, भगवान की माया से नहीं छूट सकते। श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान कहते हैं - मेरी शरण में आ जाओ। जैसे ही गजेन्द्र भगवान की शरण ली, भगवान ने उसे बचा लिया। गज-ग्राह के चंगुल से बच गया।
इस भावना से की मैं एक सांसारिक जीव माया में फंस गया हूँ, हे भगवन्! मैं आपके चरणों में शरणागत होना चाहता हूँ , हमें गजेन्द्र-मोक्ष लीला रोज़ पढ़नी चाहिये।
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