शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

भजन रहस्य - 2

अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापक श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज विष्णुपाद जी ने एक बार बताया कि कोलकाता का एक लड़का दिल्ली में नौकरी करने आया। नौकरी मिल गयी और वो वहाँ बहुत अच्छा काम करने लगा। इतना अच्छे ढंग से उसने काम को संभाल लिया कि मालिक उसे छुट्टी ही नहीं देता था। कभी वो कहता, बाबूजी मैं काम तो कर रहा हूँ लेकिन मुझे छुट्टी तो दो, तो बीच-बीच में उसे 2-1 करके छुट्टियाँ मिलतीं। साल भर में 15-20 छुट्टियाँ ही उसे मिलतीं। ऐसे करते-करते 25 साल उस लड़के ने नौकरी की दिल्ली में और 25 साल में लगभग 2 साल वो अपने घर पर रहा। औसतन 2 साल में एक महीना। इन 25 सालों मे वो जो कमाता रहा वो कमाई वह अपने घर भेजता रहा। जहाँ वो काम कर रहा है वहाँ उस कमाई को खर्च न करके, वो कोलकाता में खर्च करता रहा अपने परिवार पर। क्यों?

कोई व्यक्ति, अपने खून-पसीने की कमाई क्यों खर्च करेगा इतने दूर के स्थान पर? जो कमाता है, वो कोलकाता के घर में खर्च कर देता है। क्यों? क्योंकि उसको यह मालूम है कि मैं दिल्ली का नहीं हूँ, मैं इस बाबू का नहीं हूँं, मैं तो कोलकाता के उस परिवार से हूँ, इसलिये वो जो कुछ भी कमाता है, कमा के अपने परिवार के पास भेजता है।

25 साल काम करने के बाद एक दिन उसने अपने मालिक से कहा -- सर! अब मैं छुट्टी चाहता हूँ, बच्चे बड़े हो गये हैं, अपना कमाते हैंं, मैं घर जाना चाहता हूँ, ज़रूरत होगी तो वहीं कुछ छोटा-मोटा काम कर लूँगा। 25 साल दिल्ली में काम करने के बाद जब उसने छुट्टी ली, उसकी आँखों में कोई आँसू नहीं थे, बल्कि खुशी थी कि मैं अपने परिवार के साथ रहूँगा। क्यों? इन 25 सालों में से 22 साल से अधिक समय जहाँ काम किया, जहाँ रहा, बड़िया काम करता रहा, लेकिन वहाँ से कोई लगाव ही नहीं बिठा पाया, और 25 सालों जहाँ केवल 2 साल रहा टुकड़ों में, वहाँ इतनी आसक्ति  रही उसकी, क्यों? क्योंकि उसको अभिमान था कि मैं कोलकाता से उस परिवार से हूँ।

इसी तरह से इस संसार में हम हैं और भगवद् राज्य से आये हुये हैं हम। वहाँ का होने पर भी हम अभिमान यह रखते हैं कि मैं इस संसार का हूँ। मैं इस संसार का हूँ, इस भावना के साथ हम कुछ आध्यात्मिक क्रियायें करते भी हैं जैसे श्रीगीता पढ़ते हैं, श्रीरामायण पढ़ते हैं, तुलसी जी की सेवा करते हैं, भगवान को भोग लगाते हैं, धाम यात्रा करते हैं, मन्दिर परिक्रमा करते हैं, आदि।  यह आध्यात्मिक कार्य करने पर भी, हमारा भगवान से लगाव नहीं होगा, ठीक उसी लड़के की तरह जो 25 साल दिल्ली में रहा किन्तु अपने बाबू से कोई लगाव नहीं कर पाया। क्योंकी उसे भान था कि मैं उस परिवार से हूँ।

बहुत कुछ करने से नहीं होता है, सही करने से होता है।
बहुत मेहनत तो की, किन्तु सही मेहनत नहीं की। उसका फायदा नहीं।

श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी बताते हैं कि  भगवान का होकर भगवान की प्रीति के लिये जो कुछ करेंगे, वो भक्ति होगी।


-------------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें