श्रीमुरारी गुप्त जी के माध्यम से भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने इष्टनिष्ठा की शिक्षा प्रदान की तथा वे भी बताया कि आराध्यदेव में निष्ठा के बिना प्रेम बढ़ता नहीं। हनुमान जी के अवतार मुरारीगुप्त जी महाप्रभु जी का राम रूप से दर्शन करते थे। आपकी इष्ट निष्ठा की परीक्षा लेने के लिये श्रीमहाप्रभु जी ने आपसे कहा - 'सर्वाश्रय, सर्वांशी, स्वयं भगवान्, अखिल रसामृत मूर्ति - व्रजेन्द्रनन्दन श्री कृष्ण के भजन में जो आनन्द है, भगवान के अन्य स्वरूपों की आराधना में वह आनन्द नहीं है।' श्रीमुरारीगुप्त श्रीमहाप्रभु जी को कृष्ण-भजन करने का वचन देने पर भी घर में आकर यह सोचकर कि भगवान श्रीरघुनाथ जी के पादपद्मों को त्याग करना होगा, अस्थिर हो उठे। सारी रात जाग कर ही बिता देने पर, दूसरे दिन प्रातः महाप्रभु जी के पादपद्मों में निवेदन करते हुये बोले -'मैंने अपने इस मस्तक को श्रीरघुनाथ जी के चरणों में बेच दिया है। परन्तु अब मैं पुनः वहाँ से इस सिर को नहीं उठा सकता हूँ। अब इस दुविधा में मैं दुःख पा रहा हूँ कि श्रीरघुनाथ जी के चरण मुझसे छोड़े नहीं जाते। किन्तु यदि नहीं छोड़ता तो आपकी आज्ञा भंग होती है। कुछ समझ में नहीं आता, क्या करूँ ? आप दयामय हैं, मेरे ऊपर ऐसी कृपा करो कि आपके सामने ही मेरी मृत्यु हो जाये, तब यह संशय समाप्त हो जायेगा।'
रविवार, 14 अप्रैल 2019
श्रीहनुमान जी जब भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की लीला में आये।
श्रीमुरारी गुप्त जी के माध्यम से भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने इष्टनिष्ठा की शिक्षा प्रदान की तथा वे भी बताया कि आराध्यदेव में निष्ठा के बिना प्रेम बढ़ता नहीं। हनुमान जी के अवतार मुरारीगुप्त जी महाप्रभु जी का राम रूप से दर्शन करते थे। आपकी इष्ट निष्ठा की परीक्षा लेने के लिये श्रीमहाप्रभु जी ने आपसे कहा - 'सर्वाश्रय, सर्वांशी, स्वयं भगवान्, अखिल रसामृत मूर्ति - व्रजेन्द्रनन्दन श्री कृष्ण के भजन में जो आनन्द है, भगवान के अन्य स्वरूपों की आराधना में वह आनन्द नहीं है।' श्रीमुरारीगुप्त श्रीमहाप्रभु जी को कृष्ण-भजन करने का वचन देने पर भी घर में आकर यह सोचकर कि भगवान श्रीरघुनाथ जी के पादपद्मों को त्याग करना होगा, अस्थिर हो उठे। सारी रात जाग कर ही बिता देने पर, दूसरे दिन प्रातः महाप्रभु जी के पादपद्मों में निवेदन करते हुये बोले -'मैंने अपने इस मस्तक को श्रीरघुनाथ जी के चरणों में बेच दिया है। परन्तु अब मैं पुनः वहाँ से इस सिर को नहीं उठा सकता हूँ। अब इस दुविधा में मैं दुःख पा रहा हूँ कि श्रीरघुनाथ जी के चरण मुझसे छोड़े नहीं जाते। किन्तु यदि नहीं छोड़ता तो आपकी आज्ञा भंग होती है। कुछ समझ में नहीं आता, क्या करूँ ? आप दयामय हैं, मेरे ऊपर ऐसी कृपा करो कि आपके सामने ही मेरी मृत्यु हो जाये, तब यह संशय समाप्त हो जायेगा।'
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