कोलकाता में प्रचार कार्यक्रम के दौरान श्रीमाधव महाराज जी ने अपने गुरु भाई (श्रील प्रभुपाद के शिष्य) श्री कृष्ण केशव दास ब्रह्मचारी, श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी तथा श्री मंगल निलय ब्रह्मचारी को आसाम भेजा। ट्रेन लेट होने के कारण आप समय पर वहाँ नहीं पहुँच पाये। जब आप उनके घर से कुछ दूरी पर थे, तो आपने देखा कि सभी लोग प्रसाद पाकर हाथ धो रहे हैं। ऐसे समय पर वहाँ जाना, श्री मंगल निलय ब्रह्मचारी ने अपना अपमान समझा। और साथियों से निवेदन किया कि हमें वहाँ नहीं जाना चाहिये, क्योंकि उन्होंने हमारी प्रतीक्षा नहीं की । वैसे प्रोग्राम खत्म भी हो गया है।
उनको देख कर सभी भक्तों में खुशी की लहर दौड़ गयी और सभी के मुख पर एक ही प्रश्न था कि आप श्रीमाधव महारज के साथ क्यों नहीं आये ? आप उनके साथ आते तो और भी अच्छा होता। श्रील केशव प्रभु जी ने कहा हमारे मठ का कोलकाता में सम्मेलन चल रहा है, इसलिये श्रीमाधव महाराजजी नहीं आये और उन्होंने हमको भेजा है। सभी भक्तों के चेहरे देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे वे इनकी बात सुन कर हैरान हों।
तब सबकी ओर से जिन भक्त के पिताजी का श्राद्ध था, वे बोले कि आप क्या बात करते हैं , श्रील गुरुदेव, माधव महाराज जी तो यहाँ आये थे। उन्होंने पहले प्रवचन किया, उपदेश दिये । उन्होंने स्वयं सारा अनुष्ठान किया, अभी थोड़ी देरे पहले ही यहाँ से वे निकले।
सामान रख कर आप सीधे श्रीमाधव महाराज के कमरे में गये। प्रणाम इत्यादि होने के बाद श्रीमाधव महाराज जी ने आपके हाल-चाल पूछे, यात्रा /कार्यक्रम के बारे में पुछा , इत्यादि । जवाब में श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी ने कहा, ' हमारी ट्रेन थोड़ा लेट हो गयी थी परन्तु वहाँ भक्तों से सुना कि वहाँ की सारा पूजा, श्राद्ध, प्रवचन, इत्यादि सब आपने किया। श्रीतीर्थ महाराज जी की बात सुन कर श्रीमाधव महाराज जी मुस्कुराये। पुन: श्रीतीर्थ महाराज जी ने उनसे जानना चाहा कि यह कैसे सम्भव हुआ कि एक ही समय पर आप कोलकाता में यहाँ पर संकीर्त्तन / प्रवचन कर रहे थे भक्तों के साथ, और उधर दूर आसाम में भी उसी समय आप प्रवचन, पूजा और श्राद्ध कर रहे थे। इसके जवाब को श्रीमाधव महाराज जी टाल गये। और कहा कि बहुत दूर से आये हो, हाथ इत्यादि धोकर प्रसाद पाओ।
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