बुधवार, 22 अगस्त 2018

मेरे हरि ही जब नहीं डूबते तो मैं कैसे डूब जाऊँगा?

एक बार आप किसी कार्य से बंगलादेश गये। वहाँ से लौटते समय पद्मा नदी में स्टीमर पर बैठे।  स्टीमर चलने लगा। बहुत से लोग भी बैठे थे। स्टीमर नदी के बीच में पहुँचा ही था कि बहुत ज़ोर से हवायें चलने लगीं, तुफान उठने लगा। स्टीमर ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगा। सभी बैठे हुए यात्री घबरा गये। 

कुछ ही देर में ऐसी स्थिति हो गई कि स्टीमर अभी डूबा के अभी डूबा। स्टीमर के सभी यात्री अपना-अपना जीवन बचाने के लिए इधर-उधर दौड़ रहे थे, किन्तु स्टीमर छोड़ कर बीच नदी में कहाँ जाते? कई - कई तो चिल्लाने लगे, कुछ रोने लगे। बड़ा ही शोरगुल होने लगा। ऐसे में एक व्यक्ति बड़ा ही शान्त अपनी जगह पर बैठा हरिनाम कर रहा था। वे थे श्रीशुभ विलास जी।

पहले तो उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया, किन्तु जब उनको ऐसे अविचल भाव से बैठे देखा तो साथ के लोगों ने उनसे पूछ ही लिया -- क्या आप को मृत्यु से भय नहीं लगता? 
एक अन्य ने कहा -- हम सब इतने भयभीत हो गये हैं और आप निश्चिन्त दिख रहे हैं ! आखीर बात क्या है? 

एक अन्य यात्री समीप आकर बोला -- आप इतने शान्त कैसे हैं? क्या आपको डर नहीं लग रहा डूबने से?

तब श्रीशुभ विलास जी ने उनसे कहा -- मेरे श्रीहरि कभी आग में दग्ध नहीं होते, पानी में डूबते नहीं, अस्त्र-शस्त्र से कटते नहीं, मैं उन श्रीहरि का चरणाश्रय कर उनका नाम ले रहा हूँ। मेरे हरि ही जब नहीं डूबते नहीं, तो मैं कैसे डूब जाऊँगा?  आप सभी बैठकर एक साथ श्रीहरि की शरण में आकर मेरे साथ उनका परममंगलमय नाम लेते रहो, भगवान हम सबकी अवश्य रक्षा करेंगे। भगवान शरणागत की हमेशा रक्षा करते हैं।


इतना सुनते ही सभी यात्री उनकी बात पर विश्वास करके बैठ गये और उच्च स्वर से श्रीशुभ विलास प्रभुजी के साथ श्री हरिनाम कीर्तन करते रहे। 

कुछ ही समय में तुफान शान्त हो गया और स्टीमर किनारे आ लगा।

सभी यात्री श्रीशुभविलास प्रभुजी को प्रणाम कर कहने लगे -- आपकी कृपा से हम सब मृत्यु से बच गये।
आपने कहा -- भगवान अपने शरणागत की रक्षा करते हैं, अतः उन्होंने ही मेरे समेत आप सब को भी बचाया है।

आगे चलकर आप श्रील भक्ति मयुख भागवत महाराज के नाम से विख्यात हुए। 

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