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आप की जब वृद्धावस्था आ गई तब श्रीमहाप्रभु जी ने स्वप्न में आकर, आपको श्रीराधाकान्त जी की सेवा के लिए, श्रीध्यान चन्द्र गोस्वामी को नियुक्त करने का आदेश दिया ।
बहुत समय के बाद जब आपने शरीर छोड़ा, उस समय आपको श्मशान ले जाया गया। अभी सभी लोग वहाँ पहुँचे ही थे कि राधाकान्त मठ पर राजकर्मचारियों ने कब्ज़ा कर लिया।
श्रीध्यानचन्द्र जी को सेवा से वन्चित होता जान श्रीगोपालगुरु जिवित हो चिता से उठकर पुनः मठ में चले आये । राजपुरुष इस अलौकिक घटना को पहले से ही जान गये थे, और श्रीगोपाल-गुरु के आने से पहले ही श्रीराधा-कान्त जी का मन्दिर खोल कर वहाँ से भाग गये। और राजविधि के अनुसार मठ का सेवा-भार श्रीध्यानचन्द्र को अपने हाथों सौंप दिया, फिर शरीर त्यागा।
मरणोपरान्त बहुत दिन पीछे पुरी से आये भक्तों ने वृन्दावन में वंशीवट पर आपको भजन करते हुए बैठे देखा। जब पुरी में श्रीध्यानचन्द्र जी को पता लगा तो वे दौड़े-दौड़े वृन्दावन आये और आपके चरणों में गिर पड़े। तब आपने अप्नी दारुमूर्ति स्थापन करने का आदेश देकर उन्हें पुरी भेज दिया।
श्रीध्यानचन्द्र गोस्वामी जी की जय !!!!!
श्रीगोपाल गुरु गोस्वामी जी की जय !!!
भगवान राधा-कान्त जी की जय !!!!!
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