मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

श्रीनाथजी और नाथ-द्वार

भगवान श्रीकृष्ण के एक महान भक्त हुये हैं -- श्रील माधवेन्द्र पुरीपाद जी।

एक बार गोवर्धन जी की परिक्रमा कर व गोविन्द कुण्ड में स्नान करके सन्ध्या के समय एक वृक्ष के नीचे श्रीमाधवेन्द्र जी बैठे थे कि उसी समय एक गोपबालक दूध का बर्तन लेकर पुरी गोस्वामीजी के पास आया और माधवेन्द्र पुरी जी को अपना ये परिचय देकर कि वह एक ग्रामवासी का बालक है और ग्राम की स्त्रियों ने उसे उपवासी संन्यासी के पास भेजा है, कह कर अन्तर्हित हो गया।

रात्री के प्रहर के समय तन्द्रा में माधवेन्द्र जी ने उसी गोपबालक को देखा। वह बालक उनका हाथ पकड़ कर एक कुन्ज में ले गया और कहने लगा कि पुरी मैं तो यहाँ पड़ा हूँ। 
इस कुन्ज में वर्षा-धूप सहन करते हुये रहना बहुत ही कष्टकर है। अतः पुरी गोस्वामी मुझे यहाँ से ले चलो।

उस बालक (गोपाल जी) ने माधवेन्द्रजी से कहा कि वे उसे गोवर्धन पर्वत पर ले जायें और वहाँ मठ बना कर उसमें उनकी प्रतिष्ठा करें। साथ ही यह भी कहा कि उनका नाम गोवर्धन धारी गोपाल है, और वे श्रीकृष्ण के पौत्र (श्रीअनिरुद्ध के पुत्र महाराज वज्र) द्वारा प्रकाशित श्रीमूर्ति हैं। वे पहले इसी गोवर्धन पर्वत पर रहते थे किन्तु म्लेच्छोंं के भय से उनके सेवक उन्हें कुन्ज में रख कर चले गये हैं। 

ऐसा आश्चर्य चक्ति कर देने वाला स्वप्न देखकर माधवेन्द्र पुरी प्रातः काल 
स्नान इत्यादि करके ग्राम में गये और गिरिधारीजी की बात बता ग्राम के लोगों को साथ ले लिया। जंगल इत्यादि काट कर उन्होंने श्रीगोपाल जी का उद्धार किया तथा गोवर्धन पर लेजाकर एक पत्थर के सिंहासन पर उन्हें स्थापित किया। 

यथाविधि उनका अभिषेक सम्पन्न करने के बाद वृजवासियों द्वारा प्रदत नाना प्रकार के उपहारों से महोत्सव सम्पन्न किया।
श्रील माधवेन्द्र पुरी पादा जी द्वारा सेवित गोवर्धनधारी गोपाल ही बाद में श्रीनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुये। 

जब औरंगज़ेब मथुरा में श्रीविग्रहों को ध्वंस कर रहा था, तब उदयपुर के राणा राजसिंह ने श्रील माधवेन्द्र पुरीपाद जी द्वारा प्रकटित श्रीगोपाल जी को उदयपुर ले जाने की अनुमति ली। 

राज सिंह जब बड़ी धूमधाम से श्रीविग्रह को रथ पर सजाकर उदयपुर ले जा
रहे थे तो रास्ते में 'सियार नामक' स्थान पर रथ का पहिया मिट्टी में धंस गया, कोशिश करने पर भी जब वह नहीं निकला तो उसे गोपाल जी की इच्छा समझकर राजसिंह ने वहीं पर श्रीगोपाल जी का सुरम्य मंदिर बनवाया तथा वहीं गोपालजी को स्थापित कर दिया। 

वहाँ के लोग गोपालजी को श्रीनाथजी कहते हैं, इसलिये बाद में इस स्थान ने भी 'नाथ-द्वार' ने नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की। 

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