रविवार, 11 फ़रवरी 2018

----जी नहीं महोदय! ठंड नाम का कुछ नहीं होता (कक्षा में सन्नाटा छा गया)---

दर्शन शास्त्र का एक नास्तिक अध्यापक अपनी कक्षा के बच्चों को समझा रहा था कि विज्ञान को भगवान से क्या समस्या है?

उसने एक छात्र को खड़ा किया व कहा -- तो तुम भगवान में विश्वास करते हो?
छात्र - जी हाँ।

अध्यापक - क्या भगवान सर्वशक्तिमान है?
छात्र - जी हाँ।

अध्यापक - मेरा भाई रोग के कारण मारा गया। हालांकि वो रोज़ भगवान से प्रार्थना करता था कि वह उसे बचा ले। हम सब लोग असहाय की सहायता करते हैं, किन्तु तुम्हारे भगवान ने नहीं की। तो भगवान अच्छा कैसे हुआ?
छात्र ने कोई जवाब नहीं दिया।

अध्यापक - तुम बोल क्यों नहीं रहे? क्योंकि तुम्हारे पास जवाब है ही नहीं। अच्छा, दोबारा शुरु करते हैं।

अध्यापक - क्या भगवान अच्छा है?
छात्र - जी हाँ।

अध्यापक - क्या शैतान अच्छा होता है?
छात्र - जी नहीं/

अध्यापक - बुरे लोग अथवा शैतान आत्मायें कहाँ से आती हैं?
छात्र - भगवान से।

अध्यापक - बिल्कुल ठीक। अब ये बताओ कि जगत में बुराई है?
छात्र - जी।

अध्यापक - हर जगह दुराई है। है कि नहीं? और भगवान ने ही सब कुछ बनाया है?
छात्र - जी।

अध्यापक - तो किसने बुराई को बनाया?
छात्र  ने कोई जवाब नहीं दिया।

अध्यापक - क्या बिमारी होती है? घृणा, चालाकी, बदसूरती - ये सब इस जगत में हैं कि नहीं?
छात्र - जी, सर!

अध्यापक - और इन सबको किसने बनाया?
छात्र ने इसका भी कोई जवाब नहीं दिया।
अध्यापक - विज्ञान के अनुसार तुम्हारे पास पाँच इन्द्रियाँ हैं, जिनसे तुम इस जगत को महसूस कर सकते हो, देख सकते हो, इत्यादि। अब मेरे बच्चे तुम बताओ कि क्या तुमने भगवान को देखा है?
छात्र - जी नहीं।

अध्यापक - क्या तुमने कभी भगवान को सुना है?
छात्र - जी नहीं।

अध्यापक - क्या तुमने कभी भगवान को महसूस किया हैं? सूंघा है, चखा है, क्या किसी भी प्रकार से भगवान को इन इन्द्रियों के माध्यम से जाना है?
छात्र - जी नहीं, सर!

अध्यापक - फिर भी तुम उसमें विश्वास रखते हो?
छात्र - जी।

अध्यापक - एम्पिरिकल (अनुभव) के आधार पर, परीक्षण के आधार पर, प्रदर्शनीय प्रमाण के आधार पर, विज्ञान कहता है कि तुम्हारा भगवान है ही नहीं……………………तुम्हारा इस बारे में क्या विचार है, मेरे बच्चे?
छात्र - कुछ विशेष नहीं। परन्तु मुझे विश्वास है कि भगवान हैं।


अध्यापक - हाँ! विश्वास! यही तो विज्ञान की समस्या है......................।

छात्र -अध्यापक महोदय! क्या गर्मी नाम का कुछ होता है?
अध्यापक - हाँ।

छात्र - और क्या ठंंड नाम का कुछ होता है?
अध्यापक - हाँ।

छात्र - जी नहीं महोदय! ठंड नाम का कुछ नहीं होता (कक्षा में सन्नाटा छा गया)

छात्र - सर! आप बहुत सी गर्मी नाप सकते हैं। गर्मी, ज्यादा गर्मी, बहुत ज्यादा गर्मी, इत्यादि, इन सबको आप नाप सकते हैं। हम लोग शून्य तापमान से 458 डिग्री नीचे जा सकते हैं, जहाँ बिल्कुल गर्मी नहीं होती। हम लोग इससे और नीचे नहीं नाप सकते…………………वास्तव में ठंड
होती ही नहीं, क्योंकि ठंड नाम एक शब्द है जिसका इस्तेमाल गर्मी न होने के लिये किया जाता है। हम ठंड को नाप नहीं सकते जबकि हम गर्मी को तो नाप सकते हैं। गर्मी एक ऊर्जा है। ठंड, उसका विपरीत नहीं है, बल्कि उसका 'न' होना है। (कक्षा हाल में सन्नाटा गहरा गया)। गर्मी की कमी ही ठंड है। गर्मी जितनी कम होगी उसे ही उतनी ज्यादा ठंड का नाम दिया जाता है।

छात्र - श्रीमान! क्या अंधेरा होता है?
अध्यापक - हाँ। अगर अँधेरा नहीं होता तो फिर रात क्या है?

छात्र - आप फिर गलत बोल रहे हैं, सर! प्रकाश के न होने को अंधेरा कह देते हैं। आप हल्का प्रकाश, साधारण प्रकाश, इत्यादि कह सकते हैं। किन्तु कुछ समय लगातार प्रकाश न हो तो आप उसे अंधेरा कह देते हैं। वास्तविकता तो यह है कि अंधेरा होता ही नहीं, अगर अंधेरा होता तो आप उसको नाप सकते थे। प्रकाश के न होने को अंधेरा कह देते हैं। क्यों, मैं ठीक कह रहा हूँ, न , सर!।

अध्यापक - मेरे बच्चे, तुम कहना क्या चाह रहे हो?
छात्र - श्रीमान्! मैं यह कहना चाहता हूँ कि आपके दर्शन में कमी है।

अध्यापक - क्या कमी है? कैसे?
छात्र - सर! आप द्वन्द्व के आधार पर बात कर रहे हैं। आप कहते हैं कि
जीवन है, फिर मृत्यु भी है। अच्छा भगवान है और बुरा भगवान भी है। आप भगवान को एक मापदण्ड में मापना चाहते हैं, जैसे वे एक सीमा में बँधे हैं, जिसे हम नाप सकते हैं। सर! विज्ञान तो 'मन के भाव अथवा विचार' की व्याख्या भी नहीं कर सकता। फिर भगवान तो आगे की चर्चा का विषय है।

विज्ञान बिजली की ऊर्जा और चुम्बकीय ऊर्जा को इस्तेमाल तो करता है, परन्तु उसको समझ्ना तो दूर, विज्ञान ने उनको देखा तक नहीं है। एक अनजान व्यक्ति मृत्यु को जीवन के विपरीत कहेगा क्योंकि मृत्यु अपने - आप में होती ही नहीं है। बिना जीवन के उसके अस्तित्व को कोई मुल्य नहीं है। जीवन के सन्दर्भ में ही मृत्यु की पहचान है। मृत्यु हमारे जीवन का विपरीत नहीं बल्कि उसका न होना है। अब आप मुझे बताईये सर! कि क्या आप अपने छात्रों को ये नहीं बताते कि बन्दर हम सब के पूर्वज हैं?

अध्यापक - अगर तुम प्राकृतिक विकास क्रिया (Natural Evolutionary process) की बात कर रहे हो तो, हाँ, मैं यही कहता हूँ।
छात्र - क्या आपने इस क्रिया को अपनी आँखों से होते देखा है? (अध्यापक मुस्करा दिये व समझ गये कि बात किस ओर जा रही है)

छात्र - चूँकि न तो किसी ने इस विकास की क्रिया को देखा है और न ही कोई इसे प्रमाणित कर सकता है कि वे विकास क्रिया अभी भी चल रही है, तो क्या यह कहना गलत नहीं होगा कि सर! आप कक्षा में अपने विचार रख रहे हैं? क्या यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वास्तव में आप वैज्ञानिक नहीं बल्कि खोखले प्रचारक हैं? (कक्षा में शोर होने लगा)

अन्य छात्रों को सम्बोधित करते हुए - क्या किसी ने अध्यापक महोदय का दिमाग देखा है? (कक्षा में हँसी का ठहाका गूँजा)

बड़े ही सम्मान से छात्र ने पुनः कहा - क्या ऐसा कोई है यहाँ पर, जिसने
कभी अध्यापक महोदय के दिमाग को देखा हो, सुना हो, महसूस किया हो, स्पर्श किया हो अथवा सूंघा हो।……………………ऐसा लगता है कि किसी ने ऐसा नहीं किया। तो वैज्ञानिक सिद्धान्त के आधार पर अर्थात् एम्पिरिकल (अनुभव) के आधार पर, परीक्षण के आधार पर, प्रदर्शनीय प्रमाण के आधार पर विज्ञान कहता है कि आपका दिमाग ही नहीं है, सर!

पूरे सम्मान सहित छात्र ने अपना सिर झुकाकर कहा - महोदय! अब हम किस आधार पर आपकी बात पर विश्वास करें? (कक्षा में शान्ति छा गयी और अध्यापक महोदय की स्थिति ऐसी कि जैसे काटो तो खून नहीं)

अध्यापक - मुझे लगता है कि तुम्हें मुझ पर विश्वास ही करना होगा।

छात्र - सही बात! मनुष्य और भगवान में भी विश्वास का ही नाता है। और उस विश्वास के आधार पर इस जीवन की गति है।

(ऐसा कहा जाता है कि ये छात्र थे.............................. भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, जिन्होंने अपने मीठे व्यवहार, अपनी कार्यकुशलता, देश के लिये समर्पण, Indian Space Program and Missile Program, जैसे महान कार्यों के लिये दिशा देकर देश के हर वर्ग व हर जाति के लोगों के दिल में अपनेलिये सुन्दर जगह बनाई। यही नहीं, अपनी सुन्दर कृतियों के लिये विश्व के 40 विश्वविद्यालयों ने आपको डाक्ट्रेट कि उपाधि से विभूषित किया।  
(The Times of India के The Speaking Tree Website की एक टिप्पणी से)

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