सोमवार, 22 जनवरी 2018

क्या होता है वैराग्य?

श्रील स्वरूप दामोदर गोस्वामी जी के आनुगत्य में रह कर, श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी ने भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की बहुत सेवा की थी। 

सोलह साल के बाद, श्रीमन्महाप्रभु और श्रीस्वरूप दामोदर गोस्वामी जी के धाम लौटने के उपरान्त श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी वृन्दावन चले गये । वहाँ आप श्रील रूप गोस्वामी जी और श्रील सनातन गोस्वामी जी से मिले। श्रीलरूप गोस्वामी जी और श्रील सनातन गोस्वामी जी अपने तीसरे भाई के रूप में आपको अपने पास ही रख लिया।
श्रील रघुनाथ दास जी से निरन्तर श्रीमन्महाप्रभु जी की अमृतमयी लीला कथा सुनकर श्रील रूप गोस्वामी जी व श्रील सनातन गोस्वामी जी अत्यन्त आनन्दित होते थे।

आपने श्रीमन्महाप्रभु जी और श्रीराधा-कृष्ण के विरह में अन्न और जल त्याग दिया था। आप केवल थोड़ी सी छाछ पीते थे।

आप प्रतिदिन एक हज़ार दण्डवत्, एक लाख हरे कृष्ण महामन्त्र (हरिनाम), रात-दिन श्रीराधा-कृष्ण की अष्टकालीन सेवा, श्रीमहाप्रभु जी के बारे में कथा, तीन बार श्रीराधा-कुण्ड में स्नान, आदि करके श्रीराधा-कृष्ण जी के भजन में साढ़े सात प्रहर व्यतीत करते थे। किसी दिन कुछ समय के लिये सोते, और किसी दिन वो भी नहीं। (24 घंटों में आठ प्रहर होते हैं)।

सिद्धार्थ के वैराग्य के साथ श्रील रघुनाथ जी के वैराग्य में बाहरी रूप से कुछ सामंजस्य दिखने पर भी श्रील रघुनाथ दास जी के वैराग्य में एक छिपी हुई गम्भीरता और विशिष्टता है।

वैराग्य का आम मतलब होता है 'अनासक्ति' किन्तु खास मतलब होता है -- परम पुरुष भगवान से प्रेम ।
श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी के वैराग्य की विशिष्टता भी श्रीराधा-गोविन्द जी के चरणों में गूढ़ प्रेम के कारण होने वाली विरक्ति थी, अर्थात भगवद् प्रेम की अधिकता के कारण आपमें भगवान के अलावा अन्य सभी वस्तुओं कें स्वभाविक विरक्ति थी । यही यथार्थ वैराग्य है।


श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी की जय !!!!!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें