रविवार, 15 अक्तूबर 2017

पवित्र कार्तिक महीने में -- वृज दर्शन -- मानसी गंगा

मानसी गंगा एक अ-समान आकार का कुण्ड है। कुसुम सरोवर के प्राय ढेड़ मील दक्षिण-पश्चिम की तरफ ये मानसी गंगा तीर्थ अवस्थित है।

भगवान श्रीकृष्ण के मानस-संकल्प से यह सरोवर प्रकट हुआ है इसलिये इसका नाम हुआ मनसी-गंगा।

कहा जाता है कि एक बार श्रीनन्द महाराजजी व माता यशोदा देवीजी ने गंगा स्नान करने के लिये यात्रा प्रारम्भ की और रात को गोवर्धन के सान्निध्य में वास किया।

यात्रा को जाते देख श्रीकृष्ण ने मन-मन में सोचा कि सब तीर्थ तो इस वृज में विराजित हैं। किन्तु मुझ में प्रणय-विह्वल सरल वृजवासी इस विषय में बिल्कुल नहीं जानते। अतः मैं वृजवासियों को भी इस विषय में बताऊँगा।

श्रीकृष्ण द्वारा विचार करते ही नित्यकृष्ण किंकरी गंगाजी मकर वहिनी 
रूप से समस्त वृजवासियों के दृष्टिगोचर हुईं। साक्षात् गंगा जी को देखकर सभी वृजवासी आश्चर्यचकित रह गये। श्रीकृष्ण उनसे बोले - देखो, इस वृज में विराजित सब तीर्थ ही वृजमण्डल की सेवा करते हैं, और आप ने वृज के बाहर जाकर गंगा स्नान का संंकल्प किया था। पता लगने पर गंगादेवी स्वयं आपके सम्मुख प्रकट हुईं हैं इसलिये आप जल्दी से गंग़ा स्नान कर लीजिये। अब से यह तीर्थ मानसगंगा के नाम से जाना जायेगा।

कार्तिकी-अमावस्या तिथि को ये मानस गंगा प्रकट हुई थी इसलिये दीपावली को मानसी गंगा में स्नान और गंगा परिक्रमा एक महा मेले के रूप में परिणित हो गया है।
श्रील रघुनाथ दास गोस्वामीजी ने वृजविलास के स्तव में मानसी गंगा को श्रीराधा कृष्ण जी का नौका विहार का स्थान बताया है।

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