बुधवार, 6 सितंबर 2017

ऐसा चमत्कार देख दांतों तले ऊँगलियाँ दबा लीं

भगवान श्रीचैतन्य के बड़े भाई श्रीविश्वरूपजी एक बार अपने पिताजी श्रीजगन्नाथ मिश्र जी के साथ विद्वानों की एक सभा में गये।

वहाँ पर आप से एक भट्टाचार्य ब्राह्मण ने पूछा - क्या पढ़ते हो बालक?


आपने कहा - कुछ-कुछ सबमें पढ़ा हूँ।


श्रीजगन्नाथ मिश्र जी को अपने पुत्र का यह उत्तर ठीक नहीं लगा। उनको लग उनके पुत्र ने अहंकार-वश ऐसा उत्तर दिया है। इसलिए वे वहाँ से उठ कर चले गये।

श्रीविश्वरूप जी पिताजी के पीछे-पीछे चल दिये, व पिताजी की बात भी सुनते रहे। 

कुछ समय बाद आप फिर उस सभा में गये। सभी आपको प्रश्न-सूचक दृष्टि से देखने लगे। आपने मुस्कुराते हुये सभी को सम्बोधित करते हुये कहा - हमारे पिताजी हमसे कुछ नाराज़ हो गये। आप हमसे कुछ प्रश्न कर लेते तो शायद ऐसा नहीं होता। कृपया आप हमसे प्रश्न पूछिए।



तब एक विद्वान भट्टाचार्य जी ने कहा - आज तक तुमने जो अध्ययन किया है, उसके बारे में ही कुछ कहो।

आपने कुछ सूत्रों की व्याख्या की।


सभी ने कहा कि यह बिल्कुल ठीक व्याख्या है।


आपने मुस्कुराते हुये कहा - यह व्याख्या ठीक नहीं है। 



आपने प्रमाण सहित उन व्याख्यायों को गलत साबित कर दिया।

तब आपने तीन अलग-अलग ढंग से उन्हीं सूत्रों की व्याख्या की।


फिर उन्हें तीन बार खण्डन भी कर दिया।


सभी विद्वानों ने ऐसा चमत्कार देख दांतों तले ऊँगलियाँ दबा लीं।


भगवान की मोहिनी माया के कारण कोई नहीं जान पाया कि श्रीविश्वरूप जी भगवान हैं। 

श्रीविश्वरूप जी की जय !!!!


श्रीविश्वरूप महा-महोत्सव की जय!!!!!

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