
एक बार की बात है, अलकापुरी नामक राज्य का राजा था जिसका नाम था 'कुबेर'। वह शिवजी का भक्त था। उसके यहाँ हेम नाम का यक्ष, माली के रूप में कार्य करता था। उसकी पत्नी विशालाक्षी बहुत सुन्दर थी। यक्ष अपनी पत्नी पर बहुत आसक्त था। यक्ष रोज़ाना, राजा को शिवजी की पूजा के लिये, मानसरोवर से फूल ला के देता था। एक दिन वो मानसरोवर से फूल तो ले आया परन्तु घर आकर पत्नी से बातें करने में ही मशगूल हो गया। अतः राजा कुबेर को फूल देने नहीं जा सका। राजा यक्ष के इंतज़ार में शिवजी की पूजा नहीं कर सका।
जब राजा को यक्ष के न आने का कारण पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने उसे श्राप दिया - तू मेरे आराध्य शंकर जी की अवज्ञा करके विषय-भोग में लगा रहा, इसलिये जा पृथ्वी पर चला जा और सफेद कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो जा। प्रियतमा भी तुझ से दूर हो जायेगी।

हेम ने सारी बात बताई। और उसने मुनि की शरण ग्रहण की।
मुनिवर ने उसे कहा - अरे माली! तुम आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष वाली योगिनी एकादशी का व्रत करो। उसे करने से तुम अवश्य ही इस कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाओगे।
मुनिवर की आज्ञा पालन कर, उसने एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से उसे पहले जैसा सुन्दर शरीर प्राप्त हो गया और वह अपने घर अलकापुरी वापस आ गया। अपनी सुन्दर पत्नी से मिलकर सुखपूर्वक जीवन बिताने लगा।

हमारे पास अगर कुछ हमेशा रहेगा तो वो है, निःस्वार्थ की गयी भगवान की भक्ति।
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