शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

हमारे पास अगर कुछ हमेशा रहेगा तो वो है,...............

एक महान वैष्णव आचार्य श्रील रूप गोस्वामी जी बताते हैं कि भगवान को प्रसन्न करने के 64 मुख्य तरीकों में से एक तरीका है - एकादशी व्रत करना। एकादशी व्रत सभी व्रतों में से ठीक उसी प्रकार श्रेष्ठ है, जैसे सभी नदियों में गंगा जी एवं सभी पुराणों में श्रीमद् भागवत्  महापुराण ।

एक बार की बात है, अलकापुरी नामक राज्य का राजा था जिसका नाम था 'कुबेर'। वह शिवजी का भक्त था। उसके यहाँ हेम नाम का यक्ष, माली के रूप में कार्य करता था। उसकी पत्नी विशालाक्षी बहुत सुन्दर थी। यक्ष अपनी पत्नी पर बहुत आसक्त था। यक्ष रोज़ाना, राजा को शिवजी की पूजा के लिये, मानसरोवर से फूल ला के देता था। एक दिन वो मानसरोवर से फूल तो ले आया परन्तु घर आकर पत्नी से बातें करने में ही मशगूल हो गया। अतः राजा कुबेर को फूल देने नहीं जा सका। राजा यक्ष के इंतज़ार में शिवजी की पूजा नहीं कर सका।
जब राजा को यक्ष के न आने का कारण पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने उसे श्राप दिया - तू मेरे आराध्य शंकर जी की अवज्ञा करके विषय-भोग में लगा रहा, इसलिये जा पृथ्वी पर चला जा और सफेद कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो जा। प्रियतमा भी तुझ से दूर हो जायेगी।

पृथ्वी पर आकर यक्ष बड़े कष्ट से जीवन बिताने लगा। वनों में भटकते - भटकते वह संयोग से हिमालय जा पहुँचा और  वहाँ उसे मार्कण्डेय ॠषि के दर्शन हो गये। दयालु मुनिवर ने उसकी स्थिति देखी और स्नेह से उसे पास बुलाकर, उसे इस भयंकर रोग का कारण पूछा।

हेम ने सारी बात बताई। और उसने मुनि की शरण ग्रहण की।

मुनिवर ने उसे कहा - अरे माली! तुम आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष वाली योगिनी एकादशी का व्रत करो। उसे करने से तुम अवश्य ही इस कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाओगे।
मुनिवर की आज्ञा पालन कर, उसने एकादशी का व्रत किया और  व्रत के प्रभाव से उसे पहले जैसा सुन्दर शरीर प्राप्त हो गया और वह अपने घर अलकापुरी वापस आ गया। अपनी सुन्दर पत्नी से मिलकर सुखपूर्वक जीवन बिताने लगा।

अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के प्रधानाचार्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी बताते हैं कि एकादशी व्रत आदि जितनी भी भक्ति की साधनायें हैं, उनका उद्देश्य धन, सुन्दर स्त्री या सुन्दर पति, आज्ञाकारी पुत्र देना नहीं होता, बल्कि उनका असली उद्देश्य तो भगवान श्रीहरि की भक्ति प्राप्त करना होता है। हरिनाम करने से या एकादशी व्रत करके भगवान से उसके बदले दुनियावी वस्तुयेँ माँगना बुद्धिमानी नहीं है । क्योंकि यह दुनियावी चीज़ें सदा के लिये हमारे पास नहीं रहेंगी।

हमारे पास अगर कुछ हमेशा रहेगा तो वो है, निःस्वार्थ की गयी भगवान की भक्ति।

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