श्रीसनातन गोस्वामी जी जब गोवर्धन में थे तो अयाचित भाव से प्रतिदिन गिरिराजजी की परिक्रमा करते थे। ध्रीरे-धीरे वृद्ध होने पर, आप श्रीगोवर्धन की परिक्रमा करते हुये थक जाते थे। आपकी थकावट को देखकर, एक दिन भगवान श्रीगोपीनाथ जी गोप-बालक के रूप में आप के पास आये व आपको हवा करने लगे जिससे आपकी थकावट जाती रही।उस गोप-बालक ने गोवर्धन पर चढ़ कर श्रीकृष्ण के चरणों से चिन्हित एक शिला लाकर आपको दी व कहा -- आप बूढ़े हो गये हैं। इतना परिश्रम क्यों करते हो? मैं आपको ये गोवर्धन शिला दे रहा हूँ। इस की प्रतिदिन परिक्रमा करने से ही आप की गिरिराज जी की परिक्रमा हो जाया करेगी।
यह कह गोप-बालक अन्तर्धान हो गया। श्रील सनातन गोस्वामी गोप-बालक को अन्तर्धान होता देख भाव में रोने लगे।
इस स्थान का नाम चक्रतीर्थ है।
(श्रीसनातन गोस्वामी द्वार सेवित वही गोवर्धन शिला आजकल वृन्दावन में श्रीराधा-दामोदर मन्दिर में विराजमान है। )
मानसी गंगा के उत्तर तट पर श्रीचक्रेश्वर महादेव जी के सामने एक प्राचीन नीम का पेड़ है, इसी नीम के वृक्ष के नीचे श्रील सनातन गोस्वामी जी की भजन कुटीर थी।
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