शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

श्रीकृष्ण और श्रीशम्भु

क्षीरं यथा दधि विकारविशेषयोगात्
संजायते न हि ततः पृथगस्ति हेतोः।
यः शम्भुतामपि तथा समुपैति कार्याद्-
गोविन्दं आदि पुरुषं तमहं भजामि॥

जिस प्रकार दूध विकरित हो जाने से दही बन जाता है, तब भी कारण अर्थात् मूल रूप दूध से पृथक तत्व नहीं होता। उसी प्रकार जो कार्य करने के लिये श्रीशम्भु रूप को अपनाते हैं, उन आदि पुरुष श्रीगोविन्द का मैं भजन करता हूँ।

श्रीशम्भु, श्रीकृष्ण से पृथक दूसरे ईश्वर नहीं हैं, श्रीशम्भु की इश्वरता गोविन्दजी की ईश्वरता के अधीन है, इसलिये श्रीशम्भु तथा श्रीकृष्ण अभेद तत्व हैं। 

अभेद तत्व का लक्षण होता है कि जिस प्रकार से दूध यदि विकारी हो जाय तो दही बन जाता है उसी प्रकार विकार-विशेष योग से ईश्वर पृथक-स्वरूप प्राप्त होने पर भी 'परतन्त्र' है। उस स्वरूप में स्वतन्त्रता नहीं है। 
माया का तमोगुण तथा तटस्था शक्ति का स्वल्पता गुण एवं चिद्-शक्ति का स्वल्प ह्लादिनी मिश्रित सम्विद् गुण ----- आपस में विमिश्रित होकर एक विशेष विकार बनाता है। 

वही विकार-विशेष युक्त स्वांश भावाभास स्वरूप से ज्योतिर्मय ईश्वर है अर्थात् ज्योतिर्मय शम्भुलिंगस्वरूप, सदाशिव हैं तथा इनसे ही रुद्रदेव प्रकट होते हैं। 

सृष्टिकार्य में द्रव्यव्यूहमय उपादान, सृष्टि कार्य के समय में किसी-किसी
असुर का नाश तथा संहार कार्य समस्त क्रियायों का सम्पादन करने के लिये सवांश भावापन्न विभिन्नांश रूप शम्भु स्वरूप श्रीगोविन्दजी का गुणावतार होता है।

श्रीशम्भु का ही कालपुरुषत्व निर्णीत है।

'वैष्णवानां यथा शम्भु' इत्यादि भगवद्-वचनों का तात्पर्य यही है कि वही शम्भु अपनी काल-शक्ति के द्वारा श्रीगोविन्द जी की इच्छा के अनुसार दुर्गा देवी के साथ मिलकर ये कार्य करते हैं तथा तन्त्रादि अनेक शास्त्रों में जीवों के अधिकार के अनुसार भक्ति लाभ का सोपान स्वरूप धर्म की शिक्षा देते हैं। 
भगवान गोविन्द की इच्छानुसार ही वे मायावाद और कल्पित आगम का प्रचार करते हुये शुद्ध भक्ति का संरक्षण और पालन करते हैं। जीवों के पचास गुण पूर्णरूप में एवं जो गुण जीवों में नहीं हैं ऐसे भी पाँच गुण आंशिक रूप से श्रीशम्भु में होते हैं।
इन्हीं सब कारणों की वजह से 'शम्भु' को जीव नहीं कहा जाता, वे ईश्वर हैं परन्तु हाँ, 'विभिन्नांशगत' हैं।

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