बुधवार, 8 मार्च 2017

श्रीनवद्वीप धाम के अन्तर्गत -- श्रीमध्यद्वीप


श्रीभक्ति रत्नाकर ग्रन्थ में वर्णन है की श्रीईशान ने श्रीनिवास को बताया की --

यह माजिदा ग्राम है। 

पहले इसे 'मध्यद्वीप' कहते थे। यहाँ सप्तॠषि महानन्द में परस्पर भगवद्-गुणगान करते हुए भगवान के चिन्तन में लीन रहते थे। अतिशय प्रेमे के साथ ॠषियों की आराधना देख कर भक्त - वत्सल भगवान मध्याह्न के समय सूर्य के समान तेजस्वी रूप में प्रकट हुए। भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु के भुवन-मोहन रूप को देख ॠषितों की आँखें खुली की खुली रह गयीं।  

उन्होंने भगवान की स्तुति करते हुए कहा -- 'हे प्रभो ! हम सभी की बहुत अभिलाषा है कि हम नेत्र भरकर आपके श्रीनवद्वीप धाम का दर्शन करें, आपके नवद्वीप का सदा ध्यान करें एवं निरन्तर आपके भक्तों के गुण गाते रहें।'
भगवान ने प्रसन्न होकर कहा -- ' ॠषियो ! तुमने मन में जो सोचा है, वह सब पूर्ण होगा। मेरी नवद्वीप लीला अति गोपनीय है, मेरे सुख के लिये तुम सभी उसे गोपन रखना।'

फिर भगवान अन्तर्धान हो गये।

यहाँ मध्याह्न के समय अर्थात् दोपहर के समय सप्त-ॠषियों को श्रीगौरहरि ने दर्शन दिये थे, इसीलिये इसे 'मध्यद्वीप' कहते हैं ।'

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