बुधवार, 15 मार्च 2017

पूतना की कहानी।

श्री बलि महाराजजी की कन्या रत्नावली ने पूतना के रूप में जन्म लिया था। 

जिस समय भगवान वामन देव उपनयन संस्कार के पश्चात नर्मदा नदी के तट पर भृगुकच्छ नामक स्थान पर बलि महाराज जी की  यज्ञस्थली में भिक्षा माँगने के लिये आये थे तो उस समय वामन देव के अपूर्व रूप लावण्य और मधुर वाणी से यज्ञस्थली पर उपस्थित सभी आकर्षित हुये थे। 

छोटे से वामन को देख बलि महाराज की कन्या को वात्सल्य भाव से उन्हें स्तन पान करवाने की इच्छा हुई थी।
परन्तु बाद में श्रीवामन देव जी की प्रार्थना के अनुसार पिता द्वारा त्रिपाद भूमि करने पर जब वामन देव ने त्रिविक्रम मूर्ति धारण करते हुये दो कदमों में घ त्रिलोक और शरीर द्वारा नभ-मण्डल आच्छादित कर दिया और एक पद भूमि न दे पाने के कारण वामन देव ने बलि महाराज को वरुण पाश में बांध लिया तो बलि महाराज की मन्या का वात्सल्य भाव के बदले क्रोध प्रकटित हुआ और उसको अपने स्तनों का दूध पिलाने के स्थान पर विष पिलाने की इच्छा हुई।

वान्छाकल्पतरु श्रीवामन देव जी ने श्रीकृष्ण लीला में उसकी यह इच्छा पूरी की।

वही बलि महाराज जी की कन्या ही पूतना राक्षसी हुई।

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