शुक्रवार, 10 मार्च 2017

श्रीकोलद्वीप (श्रीनवद्वीप के अन्तर्गत)

इस समय श्रीकोलद्वीप को 'कुलिया' कहते हैं। यह नवधा भक्ति में से 'पाद-सेवन भक्ति' का स्थान है।

एक बार भक्तों को सम्बोधित करते हुए, श्रीनित्यानन्द प्रभु जी ने बताया की पाँच धाराओं के रूप से गंगा जी का यहाँ मिलन है। यहाँ पर गंगाजी के अलावा मन्दाकिनी, अलका, भगीरथी एवं गुप्तभाव से सरस्वती हैं।  पश्चिम से यमुना सहित भोगवती आयी हैं। इस कारण मानस गंगा यहाँ महावेगवती है । ॠषि इस 
स्थान को महा-म्हा-प्रयाग कहते हैं। ब्रह्मा जी ने यहाँ बहुत से यज्ञ किये थे। यह ब्रह्मसत्र स्थान है। यहाँ स्नान करने से पुनर्जन्म नहीं होता। यहाँ जल पर, स्थल पर व आकाश में जीवन त्यागने से सब जीव श्रीगोलोक-वृन्दावन को प्राप्त होते हैं। 
सत्ययुग में एक वासुदेव नाम का ब्राह्मण बालक था। वह हर समय भगवान वराह देव जी की सेवा करता था तथा उनसे दर्शनों की प्रार्थना करता रहता था। उसकी अद्भुत चेष्टा देख कर भगवान कोलरूप अर्थात् वराह रूप से उस ब्राह्मण बालक के सामने प्रकट हो गये। 
बालक ने भगवान को प्रणाम किया व भूमि पर लोटपोट होने लगा। तब भगवान ने प्रसन्न होकर कहा -- 'हे बालक ! तुम मेरे भक्त हो। तुम्हारी पूजा से मैं सन्तुष्ट हूँ । इसलिए सुनो।  कलियुग के प्रारम्भ होने पर मैं गौरांग रूप से प्रकट होऊँगा तथा यह नवद्वीप ही मेरी विहार-स्थल होगा। त्रिभुवन में नवद्वीप के समान मेरा धाम नहीं है। अभी तक यह पूरिओइ तरह से गोपनीय है। नवद्वीप में रहने से, सभी तीर्थों में रहने का फल मिलता है। मेरी गौरांग लीला के समय तुम्हारा भी यहाँ जनम होगा, तब अनायास से तुमे मेरे व मेरे भक्तों के संकीर्तन को देखोगे व मेरे अपूर्व गौरांग रूप का दर्शन करोगे।

यह कह कर भगवान अन्तर्धान हो गये।

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