शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

शिव-रात्री क्यों मनाई जाती है?

ग्रन्थराज श्रीमद् भागवतम् (12/13/16) के अनुसार, 'सभी नदियों में सबसे श्रेष्ठ हैं --- गंगा, सभी भगवद् - स्वरूपों में सबसे श्रेष्ठ हैं --- श्रीकृष्ण, इसी प्रकार सभी वैष्णवों में सबसे श्रेष्ठ हैं --- शिव जी महाराज तथा सभी पुराणों में से श्रेष्ठ है --- श्रीमद् भागवतम्।

एक बार नारद मुनि, शिव-लोक गये। वहाँ जाकर उन्होंने वैष्णवों में श्रेष्ठ श्रीशिव जी का यह कह कर गुणगान करना शुरु कर दिया कि आप तो भगवान श्रीकृष्ण के सबसे प्रिय हैं। आपका उनसे कोई भेद नहीं है । आप और वे एक ही हैं। आप जीवों का हर तरह से कल्याण कर सकते हैं, यहाँ तक कि कृष्ण-प्रेम भी दे सकते हैं।

अपनी महिमा सुन कर श्रीशिव जी महाराज जी ने बड़ी विनम्रता से नारद जी से कहा, --- ' मैं तो तुच्छ सा सेवक हूँ, श्रीकृष्ण का। ये तो उनकी अहैतुकी कृपा है कि वे अपनी सेवायें मुझे प्रदान करते हैं।'

श्रीमद् भागवत् में एक और प्रसंग है कि एक बार देवताओं और दैत्यों ने मिल कर भगवान के निर्देशानुसार समुद्र मन्थन की योजना बनाई, ताकि अमृत प्राप्त किया जा सके, परन्तु उस समुद्र मन्थन के समय सबसे पहले हलाहल विष निकला था। वह विष इतना विषैला था कि उससे समस्त जगत भीषण ताप से पीड़ित हो गया था।

देव-दैत्य बिना पिये, उसको सूंघते ही बेसुध से हो गये।

तब भगवान ने अपनी शक्ति से उनको ठीक किया । देवों ने जब इस विष से बचने का उपाय पूछा तो भगवान ने कहा कि शिवजी से अगर आप सब लोग प्रार्थना करें तो वे इसका हल निकाल लेंगे । 

श्रीशिव जी महाराज ने देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान की प्रसन्नता के लिये उस हलाहल विष को पीने का निर्णय लिया। 

आपने अपने हाथों में उस विष को लिया व पी गये। किन्तु उसको निगला नहीं। आपने विचार किया कि मेरे हृदय में रहने वाले भगवान को यह रुचेगा नहीं। इसलिये आपने वो विष अपने गले में ही रोक लिया, जिसके प्रभाव से आपका गला नीला हो गया और आप नीलकण्ठ कहलाये।

आपकी ऐसी अद्भुत व अलौकिक चेष्टा की याद में ही श्रीशिव-रात्री मनाई जाती है।

शिवरात्री का त्यौहार आप सब के लिए मंगलमय हो !!!!!!

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