बुधवार, 4 जनवरी 2017

हमारे व्यवहार से बच्चों पर बहुत असर पड़ता है।

वर्तमान समाज़ में माता-पिता एक बात से परेशान हैंं। वो यह कि बच्चे उनकी बात नहीं सुनते। उल्ट जवाब देते हैं। मान-सम्मान की बात भूल ही जायेंं। ऐसे में उन्हें सूझता ही नहीं कि क्या करें।

कुछ चिन्तन करने पर इस समस्या के कारण का पता चल सकता है। 

प्राचीन काल की बात है कि एक बार एक राहगीर भारत के भ्रमण पर था। मार्ग में उसे प्यास लगी। दूर-दूर तक कोई आबादी न देख वह प्यास से तड़प उठा। काफी चलने पर उसे एक छोटा स घर दिखाई दिया।

यह सोचकर कि वहाँ पानी ज़रूर मिलेगा, वह घर के नज़दीक पहुँचा तो उसे
गालियों की आवाज़ सुनाई दीं। रुक कर उसने देखा कि वहाँ बरामदे से एक तोता उसकी ओर देखकर उसे गालियाँ दे रहा है और कह रहा है -- तू क्या सोचता है कि मेरा मालिक यहाँ नहीं है, इसलिए तू चोरी करेगा। अभी मेरा मालिक आयेगा और तेरा सिर कलम कर देगा। मैं पिंजरे में बंद हूँ नहीं तो तेरी आँखें नोच डालता।

तोते को ऐसे बोलते देख राहगीर घबरा गया और सोचने लगा कि यही इतना क्रूर है तो इसका मालिक कितना क्रूर होगा?

वह चुपचाप वहाँ से चला गया।

प्यास के मारे उसका बुरा हाल था। कुछ दूर चलने पर एक और घर सा दिखा। घर तो नहीं कुटिया ही थी। कुटिया को देख कुछ हिम्मत हुई लेकिन फिर मन में भय था। इसलिये धीरे-धीरे घर के पास गया। वहाँ जाकर वह ये देखकर हैरान हो गया कि वहाँ भी बरामदे में वैसा जी पक्षी पिँजरे में है। उसे उस तोते की गालियाँ याद आ गयीं और वह उल्टे कदम मुड़ पड़ा।
राहगीर को वापिस जाता देख बड़े प्यार से उस तोते ने कहा --हे पथिक! आप आईये! अभी थोड़ी देर में मेरे मालिक आने वाले हैं, तब तक आप बैठिये। आप को देखकर लगता है कि आप प्यासे हैं। मैं तो पिँज़रे में बंद हूँ। आपको स्वय ही कष्ट करना होगा। उधर मटके में शीतल जल है व लोटा भी रखा है, पानी भरने के लिए। आप पानी पीकर आराम करें।

राहगीर असमंजस में पड़ गया और सोचने लगा कि अभी थोड़ी देर पहले ऐसे ही पिज़रे में बन्द तोते ने मुझ्को कितने अपशब्द कहे और एक यह तोता है कि इतना मीठा बोल रहा है। उसको थोड़ा सा डर लग रहा था कि कहीं कुछ धोखा न हो जाये और वो किसी संकट में फंस जाये।

तभी तोता बोला - आप घबराईये मत। हो सकता है आपने कुछ समय पहले मेरे जैसा ही तोता देखा हो जिसने अपशब्द कहे हों व आपका अपमान किया हो। देखो राहगीर, इसमें उस तोते का कोई दोष नहीं है या मैं
आपसे बड़े सम्मान से बात कर रहा हूँ, इसमें मेरी कोई तारीफ नहीं है। सच्चाई यह है कि वो मेरा ही भाई है। हम दोनों एक ही माता-पिता की सन्तान हैं। उसे एक कसाई ले गया और मुझे इस कुटिया का साधु अपने साथ ले लाये।

वह मेरा भाई सारा दिन उस घर में मार-काट की बातें अथवा गाली-गलौच सुनता रहता है इसलिये उसका स्वभाव भी ऐसा क्रूर सा बन गया। जबकि मैं इन संत के घर पे सत्संग सुनता रहता हूँ और संतों का आपसी सम्मानजनक व्यवहार देखता रहता हूँ। ये सब संग का प्रभाव है। कसाई के साथ रहने से, वह उसकी भाषा, व्यवहार सब सीख गया व वही करता है। जबकि मैं एक साधु पुरुष के साथ रहने के कारण, शालीनता सीख गया।
उपरोक्त कथा से पता लगता है --- 'जैसा करो संग, वैसा चड़े रंग'।

श्रीमद् भगवद् गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि घर के बड़े जैसा आचरण व व्यवहार करेंगे, छोटे भी वैसा ही करेंगे। माता-पिता व समाज़ के प्रतिष्ठित लोगों का बच्चों पर बहुत असर होता है, अतः हमें चाहिये कि हम अपने बड़ों का सम्मान करें, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करें तथा अपने बच्चों को शिक्षणीय फिल्में दिखायें व बच्चों पर नज़र रखें कि वो इन्टरनेट का उपयोग कैसे कर रहे हैं?

-- श्री भक्ति विचार विष्णु महाराज जी।

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