शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

भगवान हर परिस्थिती में अपने भक्त की रक्षा करते हैं।

महाभारत का युद्ध चल रहा था। दोनों पक्ष के सैनिक, योद्धा मार-काट मचा रहे थे। कभी किसी का पलड़ा भारी तो कभी किसी का। पितामह भीष्म बहुत वेग से युद्ध कर रहे थे। अपने वचन के अनुसार वे पाण्डव पक्ष के दस सहस्र योद्धा रोज़ाना मार देते थे। 

जब युद्ध प्रारमभ हुआ था तब कौरवों के पास ग्यारह अक्षौहिणी सेना थी। एक अक्षौहिणी अर्थात् 109350 पैदल सैनिक, 65610 घुड़सवार, 21870 हाथी पर सवार सैनिक, 21870 रथ पर सवार सैनिक। कुल मिलाकर 218700 सैनिक। 

वैसे एक हाथी, एक रथ पर सवार, तीन घुड़सवार तथा पाँच पैदल सैनिक मिल कर एक पत्ती कहलाते हैं, तीन गुणा अर्थात् 3 हाथी, 3 रथ पर सवार, 3 घुड़सवार तथा 15 पैदल सैनिक सेना-मुख कहलाता है। तीन सेना-मुख, गुल्म, तीन गुल्म एक वाहिणी, तीन वाहिणी एक पूतना, तीन पूतना एक चमू, तीन चमू एक अनीकिनि और दस अनीकिनि मिल कर एक अक्षौहिणी बनाती है। दिन पर दिन दोनों पक्षोंं के सैनिक गिनती में कम होते जा रहे थे परन्तु दुर्योधन इससे प्रसन्न नहीं था। वह जिनको मरते हुए देखना चाहता था, पितामह भीष्म अपने बाणों की दिशा उनकी ओर कर ही नहीं रहे थे।
ऐसे में एक रात वह पितामह भीष्म के पास गया। उसने उन्हें प्रणाम किया व बोला,'पितामह! आपका आश्रय पाकर हम देवों, इत्यादि को भी परास्त कर सकते हैं, फिर इन पाण्डवों की गणना ही क्या है, किन्तु मुझे लगता है कि स्नेह के कारण आप पाण्डवों पर आक्रमण नहीं करना चाहते।'

पितामह भीष्म ने दुर्योधन की ओर देखा। उसकी आवाज़ में घबराहट के चिन्ह थे व अद्भुत आशंका की घबराहट भी, फिर भी पितामह भीष्म को उसकी बात रुचि नहीं। 
उन्होंने पाँच बाण निकाले व बोले,'दुर्योधन! तुम शिखण्डी को अर्जुन से दूर रखो, क्योंकि वह पहले स्त्री था। वह जिधर रहेगा, मैं उधर वार नहीं करूँगा। कल का युद्ध कल्प के अन्त तक सब याद करेंगे। मैं इन बाणों से पाण्डवों का वध कर दूँगा।' 
दुर्योधन का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा क्योंकि वह जानता था कि पितामह जो बोलते हैं, वैसा ही करते हैं। उसने पितामह को प्रणाम किया व अपने शिविर में चला गया।

रात का घना अन्धेरा था, परन्तु दुर्योधन को नींद नहीं आ रही थी। वह अपने शिविर में प्रसन्नता से इधर-उधर टहल रहा था।
उस समय कोई और भी निद्रा छोड़, टहल रहा था। इतनी बड़ी घटना के उपरान्त शरणागत रक्षक भगवान कैसे निश्चिन्त हो सकते थे। वे अर्जुन के पास गये और उसे उठाया। वे बोले,'अर्जुन! तुम्हें याद है, जब तुम दुर्योधन को गन्धर्वों से छुड़ा कर लाये थे तो उसने तुम्हें एक वरदान देने का वादा किया था। जाओ, उसे याद दिलाओ और उस वरदान के बदले उसके वस्त्र माँग लो।'
अर्जुन तुरन्त दुर्योधन के पास गया व जैसे भगवान ने उसे समझाया था, वैसा नाटक करते हुये उसे उस वरदान की बात याद दिलाते हुये कहा,'ना जाने राजा हसरत मन में ही रह जाये, इसलिये एक दिन राजा के वस्त्र पहन कर ही तसल्ली कर लूँ। आप सिर्फ आज की रात के लिये अपनी राजकीय पोशाक मुझे दे दें ताकि मैं देख सकूँ कि मैं राजा के वस्त्रों में कैसा दिखता हूँ।'

दुर्योधन से वस्त्र लेकर जब वे आये तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इन वस्त्रों को पहनो और दुर्योधन बन कर पितामह से वे बाण माँग लाओ। 

अर्जुन व दुर्योधन की कद-काठी एक सी थी व चेहरा भी मिलता-जुलता था।
अर्द्ध-रात्रि में अर्जुन चुपचाप पितामह के शिविर में गए व दुर्योधन की तरह प्रणाम कर वे पाँच बाण माँग लिए। पितामह ने उन्हें बाण थमा दिये। जैसे ही अर्जुन बाहर जाने लगे, पितामह बोले,'अर्जुन!' अर्जुन ठिठक कर रुके व घूमे। 'अर्जुन! मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैं सोच रहा था कि मैंने दुर्योधन के आगे प्रण तो कर लिया कि कल के युद्ध में इन बाणों से पाण्डवों का वध कर दूँगा परन्त साथ ही मैं सोच रहा था कि उनके रक्षक सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण हैं, वे उनका वध होने नहीं देंगे। अब रात-रात में उनको बचाने के लिये क्या लीला करेंगे? अच्छा अर्जुन! तुम अकेले तो आये नहीं होगे, वो छलिया कहाँ है?; पितामह ने पूछा।
श्रीकृष्ण ने पितामह की बात सुनकर शिविर में प्रवेश किया। पितामह भीष्म ने उन्हें प्रणाम किया व कहा,'प्रभु! मैं यही सोच रहा था कि भक्त-रक्षक आप कैसे इन पाण्डवों की रक्षा करेंगे। आप धन्य हैं व आपके भक्त भी धन्य हैं, जिनके कल्याण के लिये आप निरन्तर सतर्क रहते हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान अपने भक्त की हर स्थिती में रक्षा करते हैं।
भगवान ने गीताजी में भी कहा है,'जो लोग अनन्यभाव से मेरे दिव्यस्वरूप का ध्यान करते हुये मेरी पूजा करते हैं, उनकी जो आवश्यकतायें होती हैं, उन्हें मैं पूरा करता हूँ और हर प्रकार से उनकी रक्षा करता हूँ।

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