शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

पवित्र कार्तिक महीने में -- वृज दर्शन -- एठा कदम्ब

भगवान श्रीकृष्ण के परामर्श के अनुसार नन्द महाराजजी और गोपों द्वारा इन्द्र यज्ञ के लिये संग्रहीत द्रव्यों द्वारा गिरिराज गोवर्धन की पूजा करने पर देवराज इन्द्र क्रोधित हो गये और भीषण जल वर्षा करने लगे।

तब वृजवासी श्रीकृष्ण के शरणागत हुये।

ऐसा कहा जाता है कि उस समय श्रीकृष्ण ने पैठा ग्राम में इन्द्र के उपद्रव से वृजवासियों की रक्षा करने के लिये, सखाओं के साथ परामर्श किया था।

श्रीकृष्ण के अत्यन्त सुकोमल हाथों द्वारा विराट गोवर्धन पर्वत धारण असम्भव और अनुचित है - ऐसा सोचकर सखाओं ने श्रीकृष्ण को ऐसा कार्य करने से मना कर दिया। किन्तु सखाओं के मना करने पर भी श्रीकृष्ण बार-बार गोवर्धन धारण करने की इच्छा प्रकट करते रहे। तब सखाओं ने सामने खड़े एक कदम्ब के वृक्ष को दिखाते हुये कहा कि यदि तुम इस कदम्ब के वृक्ष को मुचोड़ सको तब हमें विश्वास हो जायेगा कि तुम गोवर्धन धारण कर सकोगे। और तभी हम तुम्हें गोवर्धन धारण करने की अनुमति देंगे।
सखाओं की ऐसी बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उसी समय कदम्ब वृक्ष को मुचोड़ दिया। ये देखकर सखाओं को विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण गोवर्धन धारण कर सकते हैं।

तब उन्होंने श्रीकृष्ण को मल्ल (पहलवान) के वेश में सजा कर उनकी कमर में पेटी बाँध कर गोवर्धन धारण करने के लिये सम्मति दे दी।

तब से कदम्ब वृक्ष 'एठाकदम्ब' एवं स्थान पैठा नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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