गुरुवार, 8 सितंबर 2016

जब श्रीमती राधा जी ने अपनी बन्द आँखें खोल दीं।

आप गोलोक में रास मण्डल के बायीं तरफ से आविर्भूत होकर श्रीकृष्ण की तरफ दौड़ीं थीं, इसलिये आपका नाम राधा हुआ।

आपका प्राकट्य श्रीकृष्ण से ही हुआ है, श्रीकृष्णाभिन्न तनु होने के कारण आप श्रीकृष्ण की प्रियतमा हैं।

श्रीमती राधाजी के रोम छिद्रों से लाख-करोड़ गोपियां व श्रीकृष्ण के रोम छिद्र से लाख-करोड़ गोप और गऊँऐं प्रकट हुई थीं।

बृहद्गौतमीय तन्त्र में श्रीमती राधा रानी का नाम स्पष्ट रूप में लिखा है।

आपके आविर्भाव के सम्बन्ध में ऐसा सुना जाता है - 
यमुना के तट पर श्रीवृषभानु राज की तपस्या से राधारानी यमुना में अपूर्व सौ दलों वाले पद्म में स्वयंअ प्रकटित हुयी थीं, वृषभानु राज अति आश्चर्य रूपलावण्यमयी कन्या को प्राप्त कर परमानन्दित हुये । किन्तु जब उन्होंने देखा की कन्या की आँखें बन्द हैं, तो वे अति दुःखी हुये। हर समय कन्या के चक्षु बन्द देख वे अत्यन्त दुःखी मन से समय काटने लगे।

एक उनके बन्धु नन्द महाराज जी अपनि पत्नी यशोदा देवी, शिशु गोपाल को लेकर वृषभानु राजा के पास आये तो वृषभानु राज नन्दमहाराज के सामने अपना दुःख निवेदन करने लगे। उसी समय एक अद्बुत लीला हुई।

शिशु गोपाल रेंगता रेंगता राधारानी के पास चला गया। जैसे ही उसने आपको स्पर्श किया, आपने अपनी आँखें खोल दीं। 

श्रीमती राधारानी का संकल्प था कि आप आँखें खोलते ही पहले श्रीकृष्ण को देखेंगीं। इसलिये श्रीकृष्ण के आने के सात साथ ही राधा रानी ने नेत्र खोल दिये।

श्रीमती राधारानी की जय !

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