
आप सभी को श्रीश्रीगौर सुन्दर की प्रचारित शुद्ध-भक्ति की बात समझाते व सभी से हरि भजन कराते।
आप उसमें बताते हैं - इस कलियुग में कीर्तन भक्ति के अतिरिक्त अन्य और भक्ति साधनों का अनुष्ठान करना हो तो उन्हें कीर्तन भक्ति के सहयोग से ही करना चाहिये।
यद्यप्यन्या भक्तिः कलौ कर्तव्या,
तदा कीर्तनाख्य - भक्ति - संयोगेनैव ।
श्रील जीव गोस्वामी जी ने ही सबको यह बताया की हरिनाम के जप से कीर्तन का 100 गुना ज्यादा फायदा होता है। तो क्यों न, कीर्तन किया जाये!
श्रील हरिदास ठाकुर जी नित्यप्रति जो तीन लाख हरिनाम किया करते थे, उसमें पहला 1 लाख हरिनाम उच्च स्वर से किया करते थे।
यद्यप्यन्या भक्तिः कलौ कर्तव्या,
तदा कीर्तनाख्य - भक्ति - संयोगेनैव ।

श्रील हरिदास ठाकुर जी नित्यप्रति जो तीन लाख हरिनाम किया करते थे, उसमें पहला 1 लाख हरिनाम उच्च स्वर से किया करते थे।
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