जब मैं किसी प्राणी को कष्ट दूँगा तो निश्चय ही मुझे कष्ट प्राप्त होगा। यह एक वैज्ञानिक सत्य है -- 'To every action there is equal and opposite reaction.' प्रत्येक क्रिया की समजातीय प्रतिक्रिया होती है। इसमें कोई रिहाई नहीं है।
श्रीवेद्व्यास जी द्वारा रचित 18 पुराणों में से मार्कण्डेय पुराण में सूरत राजा का प्रसंग मिलता है।
सूरत राजा देवी के भक्त थे। वे देवी का बहुत भजन - पूजन करते थे। सूरत राजा ने अपने जीवन में देवी की प्रसन्नता के लिए एक लाख बकरों की बलि चढ़ाई थी।
जब उनकी मृत्यु का समय आया तो एक एक लाख प्राणी अपने-अपने हाथों में खड्ग लेकर उनके इर्द-गिर्द खड़े हो गये और चिल्ला-चिल्ला कर उनसे कहने लगे कि तुमने हम सब को अपनी खड्ग से काटा था, अब हम सब तुम्हें काटेंगे।
यह दृश्य देखकर सूरत राजा अत्यन्त भयभीत होकर देवी के शरणागत हुए और अपनी रक्षा के लिए देवी से प्रार्थना करने लगे।
देवी गम्भीर स्वर में बोलीं - वत्स! तुमने इन सब प्राणियों को काटा था, अब बारी-बारी से एक-एक प्राणी तुम्हें एक-एक जन्म में काटेगा अर्थात् इस कर्म के भोग के लिए तुम्हें क लाख बार मातृ गर्भ में रहने का कष्ट उठाना होगा तथा हर जन्म में खड्ग द्वारा काटे जाने की यातना को सहन करना होगा। गर्भ में रहते हुए कीड़ों के द्वारा काटे जाओगे तथा माता के मल-मूत्र और कफ के मध्य में रहते हुए तुम्हें गर्भ की यंत्रणाओं को सहन करना होगा।
देवी के द्वारा ऐसी आकाशवाणी सुनकर सूरत राजा व्याकुल होकर काँपने लगे और कहने लगे - हे माता! मैं इतना कष्ट सहन नहीं कर सकूँगा। आपकी ही सेवा एवं प्रसन्नता के लिए मैंने इन प्राणियों की बलि दी थी। अब आप मेरी रक्षा कीजिए।
देवी ने स्पष्ट शब्दों में कहा - वत्स! मैं आपकी रक्षा नहीं कर सक्ती। आपने इन प्राणियों का वध किया है, अब यह सब आपका वध करेंगे।
भयभीत होकर सूरत गिड़गिड़ाये - हे माता! मैंने आपके लिए ही इन सब को काटा है।
देवी ने फिर कहा - वत्स! मुझे धोखा देने की कोशिश मत करो तथा अपने आप को भी धोखा मत दो। क्या आपने मेरे लिए इन सब का बलिदान किया था? याद करो उस मन्त्र को जिसका आपने मेरी पूजा करने के बाद उच्चारण किया था --
'धनं देहि जनं देहि…………।'
क्या आपने बोला नहीं था कि हे देवी मुझे धन दो, जन दो, रिश्तेदार-कुटुम्ब दो, तन्दुरस्ती दो, मुझे दुश्मनों से जय करवा दो और मेरे मनोनकूल मेरी चित्त्वृति की अनुसारणीं मेरी रुचि अनुकूल मनोरमा भार्या दो। क्या इन सब को प्राप्त करने के लिए आपने मेरी पूजा नहीं की थी? आप कहते हओ कि आपने मेरे लिए मेरी पूजा की। ज़रा सोचो, क्या आपने अपने लिए यह सब कुछ नहीं किया था? तो अब अपने इस दोष को मेरे सिर पर क्यों मढ़ रहे हैं? आपने इन सबको काटा है अब यह सब मिलकर आपको अवश्य काटेंगे, मैं इन्हें रोक नहीं सकती।
यह सुनकर सूरन उच्च स्वर में रोने लगे।
सूरत राजा देवी के प्रिय भक्त थे। उनको रोता देखकर देवी उन्हें कहने लगी - 'सूरत! सुनो, यह एक नित्य सत्य है कि प्रत्येक क्रिया की समजातीय प्रतिक्रिया अवश्य होती है। यह सब प्राणी तुम्हें काटेंगे तो अवश्य, इन्हें कोई नहीं रोक सकता। हाँ, मैं अपनी दैवी शक्ति से इतना कर सकती हूँ कि एक लाख जीव आपको एक ही जन्म में एक साथ ही काटेंगे। इस प्रकार आप मेरी कृपा से लाख बार मरने और जन्मने से होने वाली गर्भ-यन्त्रणा से बच जाओगे।
सूरत राजा बोले - माता, ऐसा ही कर दो।
देवी, 'तथास्तु' कह कर अन्तर्ध्यान हो गयीं।
(श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज 'विष्णुपाद' जी के प्रवचनों से)
(संस्थापक - अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ)
श्रीवेद्व्यास जी द्वारा रचित 18 पुराणों में से मार्कण्डेय पुराण में सूरत राजा का प्रसंग मिलता है।
सूरत राजा देवी के भक्त थे। वे देवी का बहुत भजन - पूजन करते थे। सूरत राजा ने अपने जीवन में देवी की प्रसन्नता के लिए एक लाख बकरों की बलि चढ़ाई थी।
जब उनकी मृत्यु का समय आया तो एक एक लाख प्राणी अपने-अपने हाथों में खड्ग लेकर उनके इर्द-गिर्द खड़े हो गये और चिल्ला-चिल्ला कर उनसे कहने लगे कि तुमने हम सब को अपनी खड्ग से काटा था, अब हम सब तुम्हें काटेंगे।
यह दृश्य देखकर सूरत राजा अत्यन्त भयभीत होकर देवी के शरणागत हुए और अपनी रक्षा के लिए देवी से प्रार्थना करने लगे।
देवी गम्भीर स्वर में बोलीं - वत्स! तुमने इन सब प्राणियों को काटा था, अब बारी-बारी से एक-एक प्राणी तुम्हें एक-एक जन्म में काटेगा अर्थात् इस कर्म के भोग के लिए तुम्हें क लाख बार मातृ गर्भ में रहने का कष्ट उठाना होगा तथा हर जन्म में खड्ग द्वारा काटे जाने की यातना को सहन करना होगा। गर्भ में रहते हुए कीड़ों के द्वारा काटे जाओगे तथा माता के मल-मूत्र और कफ के मध्य में रहते हुए तुम्हें गर्भ की यंत्रणाओं को सहन करना होगा।
देवी के द्वारा ऐसी आकाशवाणी सुनकर सूरत राजा व्याकुल होकर काँपने लगे और कहने लगे - हे माता! मैं इतना कष्ट सहन नहीं कर सकूँगा। आपकी ही सेवा एवं प्रसन्नता के लिए मैंने इन प्राणियों की बलि दी थी। अब आप मेरी रक्षा कीजिए।
देवी ने स्पष्ट शब्दों में कहा - वत्स! मैं आपकी रक्षा नहीं कर सक्ती। आपने इन प्राणियों का वध किया है, अब यह सब आपका वध करेंगे।
भयभीत होकर सूरत गिड़गिड़ाये - हे माता! मैंने आपके लिए ही इन सब को काटा है।
देवी ने फिर कहा - वत्स! मुझे धोखा देने की कोशिश मत करो तथा अपने आप को भी धोखा मत दो। क्या आपने मेरे लिए इन सब का बलिदान किया था? याद करो उस मन्त्र को जिसका आपने मेरी पूजा करने के बाद उच्चारण किया था --
'धनं देहि जनं देहि…………।'
क्या आपने बोला नहीं था कि हे देवी मुझे धन दो, जन दो, रिश्तेदार-कुटुम्ब दो, तन्दुरस्ती दो, मुझे दुश्मनों से जय करवा दो और मेरे मनोनकूल मेरी चित्त्वृति की अनुसारणीं मेरी रुचि अनुकूल मनोरमा भार्या दो। क्या इन सब को प्राप्त करने के लिए आपने मेरी पूजा नहीं की थी? आप कहते हओ कि आपने मेरे लिए मेरी पूजा की। ज़रा सोचो, क्या आपने अपने लिए यह सब कुछ नहीं किया था? तो अब अपने इस दोष को मेरे सिर पर क्यों मढ़ रहे हैं? आपने इन सबको काटा है अब यह सब मिलकर आपको अवश्य काटेंगे, मैं इन्हें रोक नहीं सकती।
यह सुनकर सूरन उच्च स्वर में रोने लगे।
सूरत राजा देवी के प्रिय भक्त थे। उनको रोता देखकर देवी उन्हें कहने लगी - 'सूरत! सुनो, यह एक नित्य सत्य है कि प्रत्येक क्रिया की समजातीय प्रतिक्रिया अवश्य होती है। यह सब प्राणी तुम्हें काटेंगे तो अवश्य, इन्हें कोई नहीं रोक सकता। हाँ, मैं अपनी दैवी शक्ति से इतना कर सकती हूँ कि एक लाख जीव आपको एक ही जन्म में एक साथ ही काटेंगे। इस प्रकार आप मेरी कृपा से लाख बार मरने और जन्मने से होने वाली गर्भ-यन्त्रणा से बच जाओगे।
सूरत राजा बोले - माता, ऐसा ही कर दो।
देवी, 'तथास्तु' कह कर अन्तर्ध्यान हो गयीं।
(श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज 'विष्णुपाद' जी के प्रवचनों से)
(संस्थापक - अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ)
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