रविवार, 14 अगस्त 2016

तो, सच क्या है, जी?

शास्त्रेर सिद्धान्ते तबु पूज्य नारायण।
ब्रह्मा शिव सृष्टिलय कार्येर कारण॥
वासुदेव छाड़ि' येइ अन्यदेवे भजे।
ईश्वर छाड़िया सेइ संसारेते मजे॥

शास्त्रों के सिद्धान्त के अनुसार श्रीनारायण ही सर्व-पूज्य हैं, जबकि
ब्रह्माजी व शिवजी तो इस संसार की सृष्टि करने के लिए व प्रलय करने के कार्य के लिए हैं। सच्चाई यह है कि भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर जो और-और देवताओं का भजन करते हैं, वे ईश्वर को छोड़कर संसार में ही फंसे रहते हैं। (श्रीकृष्ण, श्रीनारायण और श्रीविष्णु तत्वतः एक ही हैं)।  

केह बले, 'विष्णु परतत्त्व बटे जानि।
सर्वविष्णुमय विश्व वेदवाक्य मानि॥
अतएव सर्वदेवे विष्णु अधिष्ठान।
सर्व देवार्चने हय विष्णुर सम्मान॥

कोई कहता है कि ठीक है कि श्रीविष्णु - तत्व ही परतत्व है, यह वेद-वाणी है। इसे मैं मानता हूँ और चूंकि ये सारा विश्व ही विष्णुमय है इसलिए वेद के इस सिद्धान्त के अनुसार सब देवताओं में ही श्रीविष्णु का अधिष्ठान है, अतः सभी देवताओं का अर्चन होने से, श्रीविष्णु का ही सम्मान होता है।

एइ त' निषेधपर वाक्य, विधि नय। 
अन्यदेवपूजार निषेध एइ हय॥
सर्व विष्णुमय विश्व, ए कथा बलिले।
विष्णुपूजा कैले सब देवे पूजा मिले॥

यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि उपरोक्त शास्त्र सिद्धान्त है परन्तु
ये विधि का सिद्धान्त नहीं है, ये तो निषेध का सिद्धान्त है अर्थात् सारा विश्व विष्णुमय होता है या सभी देवताओं में विष्णु भगवान का अधिष्ठान होता है -- इसका मतलब यह नहीं कि किसी भी देवता की पूजा करने से या सब देवताओं की पूजा करने से भगवान विष्णु की पूजा हो जाती है, इस शास्त्र-वाक्य का तात्पर्य है कि भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है।

तरुमूले जल दिले शाखार उल्लास।
पल्लवे ढालिले जल वृक्षेर  विनाश॥
अतएव पूजि विष्णु अन्यदेव त्यजि'।
ताहातेइ अन्यदेव करये काये पूजि॥
ठीक उसी प्रकार जैसे वृक्ष की जड़ को सींचने से उसका तना, उसकी शाखाएँ, टहनियाँ व पत्तों आदि का पोषण हो जाता है अर्थात् सभी को पानी मिल जाता है, जबकि पत्तों पर जल डालने से वृक्ष सूख जाता है, उसे पानी नहीं मिलता। इसलिए अन्य देवताओं की पूजा त्यागकर, श्रीविष्णु जी की पूजा करनी चाहिए, इस से अन्य देवताओं की पूजा अपने-आप ही हो जाती है।

एइ विधि-वेदेर सम्मत चिरदिन।
दुर्विपाके एइ विधि छाड़े अर्वाचीन॥
मायावाददोषे जीव कलि आगमने।
बहुदेव पूजे विष्णु सामान्य दर्शने॥

प्राचीन काल से, वेद-सम्मत यह विधि ही चली आ रही थी, किन्तु दुर्भाग्यवश अब कुछ नये मूढ़ व्यक्तियों ने यह विधि छोड़ दी।  माया वाद के दोष से व कलियुग के आने से लोग भगवान विष्णु को सभी देवताओं के समान जानकर अन्य देवी-देवताओं की पूजा करने लग पड़े हैं।

एक एक देव एक एक फलदाता।
सर्वफलदाता विष्णु सकलेर पाता॥
कामिजन यदि तत्त्व जानिवरे पारे।
विष्णु पूजि' फल पाय, छाड़े देवान्तरे॥
एक-एक देवता, एक-एक फल को देने वाला है, किन्तु श्रीविष्णु सर्वफलदाता एवं सबके पालक हैं। सकामी व्यक्ति भी यदि इस तत्व को समझ लें तो वे भगवान विष्णुजी की पूजा करके अपने-अपने फलों को पा लेंगे तथा देवी-देवताओं की पूजा छोड़ देंगे।

---- श्रीहरिनाम चिन्तामणि से।

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