बुधवार, 9 मार्च 2016

……हमारे आराध्य 'राम' किसी के लिये नहीं हैं……

एक बार की बात है जब भारत के राज्य आसाम के मुख्यमन्त्री श्रीगोपीनाथ बड़दलई के घर पर श्रीमद् भागवत् पाठ का आयोजन किया गया। श्रीचैतन्य गौड़िय मठ के संस्थापक आचार्य, श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराजजी से सुन्दर सुयुक्तिपूर्ण श्रीमद् भागवत की हृदयग्राही व्याख्या सुनकर सभी सुनने वाले मुग्ध हो गये।
एक दिन, श्रीगोपीनाथ बड़दलईजी ने कथा समाप्त होने पर श्रील भक्ति दयित माधव महाराजजी से कहा - आपसे भागवत पाठ सुन कर मुझे ऐसा लगता है कि आपने भागवत पाठ का उद्देश्य एवं महात्मा गाँधीजी के भाषणों का उद्देश्य एक ही है। आप भी अनेक शास्त्र-प्रमाणों एवं युक्तियों से सब कुछ समझा कर, सभी से श्रीकृष्ण नाम करवाते हैं। गाँधीजी भी अपने भाषणों में अनेक प्रसंग सुना कर अन्त में सभी को 'श्रीराम धुन' गाने के लिये कहते हैं। आप दोनों का ही उद्देश्य है -- सभी से हरिनाम करवाना। मैं आप दोनों में कोई अन्तर नहीं देखता हूँ। आपका इस बारे में क्या विचार है।

श्रील महाराजजी मुस्कराते हुये कहा -- यदि आप नाराज़ न हों तो मैं अपना मत व्यक्त करूँ?
श्रीगोपीनाथ बड़दलई -- आपके मुल्यवान उपदेशों को सुन कर हम कृतार्थ हुए हैं। हमने इस प्रकार की ज्ञान से परिपूर्ण भागवत व्याख्या कभी किसी से नहीं सुनी थी। आप हमारे मंगल के लिये कुछ कहें और हम असन्तुष्ट हों, ये हो ही नहीं सकता। आप निःसंकोच अपना मत व्यक्त कर सकते हैं।
श्रीमहाराज जी -- जब मैं घर में रहता था, तब कांग्रेस के स्वाधीनता अन्दोलन से भी कुछ जुड़ा हुआ था। उस समय साबरमती से काँग्रेस की  'Young India' नामक एक अंग्रेज़ी पत्रिका प्रकाशित होती थी। मैं उस पत्रिका को पढ़ता था। उसमें एक बार एक लेख में मैंने पढ़ा था कि गाँधी जी ने किसी स्थान पर अपने भाषण में, देशवासियों को अपना देश-प्रेम जताने के लिये कहा था कि यदि ज़रूरत पड़े तो वे देश के लिये अपनी प्रिय 'राम-धुन' का भी परित्याग कर सकते हैं। जहाँ तक मुझे याद है, पत्रिका में लिखा था -- I can Sacrifice 'Ramdhun' for my Country, किन्तु हम लोग ठीक इसके विपरीत हैं --
'We can Sacrifice Country for Ramdhun', हमारे आराध्य 'राम' किसी के लिये नहीं हैं, वे स्वयं अपने लिये हैं एवं समस्त वस्तुएँ उनके लिये हैं। पाश्चात्य दार्शनिकों ने भी 'Absolute'  को इसी प्रकार संज्ञा दी है -- 'Absolute it for Itself and by Itself ', हम लोग 'It God' नहीं कहते। हमारे भगवान परम पुरुष हैं इसलिये हम लोग कहते हैं कि 'Absolute is for Himself and by Himself'। भगवान् से ही अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड आते हैं; भगवान् में ही उनकी स्थिति है तथा भगवान् के द्वारा ही उनका संरक्षण होया है --  इसलिए अनन्त करोड़ विश्व-ब्रह्माण्ड भगवान के लिये हैं। भगवान की आराधना करने के लिये भगवद्-तत्व को समझने की ज़रूरत है।

श्रीगोपीनाथ बड़दलई श्रील माधव महाराजी के असामन्य व्यक्तित्व से इस प्रकार आकृष्ट हए कि उन्होंने अपने संकल्प की बात श्रीमहाराज जी के समक्ष व्यक्त की कि वे संसार छोड़ कर मठ में रहेंगे तथ सर्वतोभाव से अपने आपको भगवत् सेवा में लगाएँगे।

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