

भारत में विदेशी हमलावरों का आतंक फैल गया था। भागवत धर्म, सनातन धर्म लगभग लुप्त आ हो गया था। सभी लोग विषय भोगों में लिप्त हो गये थे। ऐसे समय में जो स्वयं को चतुर्वेदी, भट्टाचार्य अथवा चक्रवर्ती कहते थे वे स्वयं शास्त्र के मर्म को न जानते थे। धर्म-कर्म के नाम पर लोग उसी को पुण्यात्मा कहते थे जो स्नान के समय गोविन्द, पुण्डरीकाक्ष, इत्यादि नाम लेते थे। लोगों केए पास धन का अभाव नहीं था पर वे उसका व्यय मिट्टी की गुड़ीया अथवा पालतु कुत्ते-बिल्लियों के विवाह में करते थे। सभी लोग विष्णु भक्ति शून्य थे। पापी लोग स्वयं तो साधन-भजन करते नहीं थे और तो और कोई साधु अगर ताली बजाकर कृष्णनाम कर रहे हों तो ये लोग उन पर भी क्रोध करते अथवा उनका मज़ाक उड़ाते थे। लोग यही समझते अथवा कहते थे कि बरसात के चार महीने तो भगवान सोते हैं, इसलिये हरि-कीर्तन इत्यादि करने से भगवान की नींद में व्यवधान आयेगा। इससे कुपित हुये भगवान देश में दुर्भिक्ष करायेंगे।


हर अत्याचार की एक सीमा होती है। पाप का घड़ा भी एक न एक दिन भर जाता है। फिर सभी शास्त्र कहते हैं कि पाप का फल तो दुःख ही होता है। जीवों के दुःख को भगवान बहुत समय तक सहन नहीं करते। इसलिये भक्तवत्सल श्रीगौरसुन्दर अपने भक्तों की पुकार पार दहकते दुःखों के दावानल में जलते हुए जीवों पर दया करने के लिए, इस युग के धर्म, अर्थात् हरि कीर्तन के प्रचार-प्रसार हेतु श्रीधाम मायापुर (नदिया) में फाल्गुनी पूर्णीमा तिथि के अति शुभ लग्न में अर्थात् 18 फरवरी 1486, की सन्ध्या में प्रकट हो गये।

कलियुग के युगधर्म 'कीर्तन' के प्रचार-प्रसार का आरम्भ आपने ही किया था।
कई लोग भगवान महाप्रभु को सिर्फ एक प्रेमी भक्त मानते हैं, वे ज़रा सोचें की अनेक भक्तों के चरित्र पढ़ने-सुनने के बाद, क्या कभी सुना है कि उन भक्तों ने अपने किसी भक्त को स्वयं भगवान के स्वरूप के रूप में दर्शन दिया हो। श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने अपने प्रिय भक्तों को अपने विराट रूप में, श्रीकृष्ण रूप में, परब्रह्म श्री राम, श्रीनारायण, श्रीनृसिंह, श्रीवराह, आदि अनेक स्वरूपों से दर्शन दिये थे व देते हैं।
श्रीमद् भागवत, श्रीमहाभारत, श्रीनृसिंह पुराण, श्रीब्रह्मपुराण, श्रीबृहन्नारदीय पुराण, श्रीब्रह्मयामल, श्रीकपिल तन्त्र, श्री जैमिनी भारत, श्रीअनन्त संहिता, श्रीश्वेताश्वर उपनिषद, श्रीकलिसन्तरणोपनिषद, श्रीभागवत-सन्दर्भ, श्रीबृहद् भागवतामृत, श्रीचैतन्य भागवत तथा श्रीचैतन्य चरितामृत आदि तमाम वैदिक शास्त्र इस बात के प्रमाण हैं।


भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की जय !!!!!!
श्रीगौर पूर्णिमा की जय !!!!!
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