
युधिष्ठिर एकचक्र के सुन्दर वातावरण, महकते वायु मण्डल को देख अत्यधिक चकित थे। इतने वनों में वे घूमे पर ऐसा मनमोहक उपवन उन्होंने नहीं देखा था। उनके मन में रह-रह कर यही बात उठती थी की हो न हो इस स्थान का श्रीकृष्ण से जरूर कुछ सम्बन्ध है अन्यथा इसमें इतनी सुन्दरता होने का कोई कारण नहीं है।

भगवान बलराम बोले, -- 'यहाँ से कुछ ही दूरी पर नवद्वीप नामक स्थान है गंगा नदी के किनारे । कलियुग के प्रारम्भ में श्रीकृष्ण, एक ब्राह्मण के घर में, नवद्वीप में प्रकट् होंगे, हालांकि वे अपना रूप छिपाये रहेंगे। उन्हीं की इच्छा से उनके सेवक-भक्त अनेक स्थानों पर जन्म लेंगे। उन्हीं की इच्छा से मैं यहाँ पर जन्म लूँगा।'
इतना कह कर श्रीबलराम जी अदृश्य हो गये।
इधर कलियुग के प्रारम्भ में श्रीबलराम जी जब श्रीनित्यानन्द रूप में आये, उससे पहले ही उनका एकचक्र गाँव बहुत प्रसिद्ध हो चुका था। इस में बहुत से मन्दिर थे। एक बहुत ही प्राचीन शिव-पार्वती जी का मन्दिर भी था। समीप ही एक विशाल नदी प्रभावती बहती थी, जिसमें 12 महीने पानी रहता था।
आसपास के वन में अहिंसक पशुओं की भरमार थी । रात-दिन कोयल की कु-कू, भ्रमरों की गुंजार, पक्षियों की चहचहाट होती रहती थी।
किसी को भी नहीं पता था की यह गाँव कहाँ से व कब प्रकट हुआ परन्तु यहाँ के निवासी बहुत ही सुख व आनन्द से रहते थे। एकचक्र में वैभवशाली लोगों सहित विद्वान पण्डितों का भी वास था। कुछ भविष्य ज्ञान कहते थे की इस स्थान पर श्रीबलराम प्रकट होंगे, अतः यह स्थान भी मथुरा-अयोध्या की तरह धाम है।
श्रीनित्यानन्द जी की कृपा के बिना पापी और अपराधी जीवों का उद्धार का

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें