रविवार, 22 नवंबर 2015

वह तो केवल 'पैसा' 'पैसा' ही कहता रहता है।

जगद्गुरु नित्यलीलाप्रविष्ट ॐ विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद् भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी अपने समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे। आपने उस समय के अनेकों दिग्गजों को श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की तरह बहुत सम्मान देते हुए, शास्त्रार्थ में परास्त किया था। आप कहा करते थे मेरी नज़र में श्रीमद्भागवतम् का तात्पर्य अगर कोई ठीक ढंग से जानने वाला है तो वे हैं श्रील गौर किशोर दास बाबाजी महाराज जी। कभी कभी आप यह भी कहा करते थे कि श्रीमद्भागवत के सर्वोत्तम विद्वान श्रील गौर किशोर दास बाबाजी महाराज जी हैं। हालांकि दुनियावी दृष्टि से श्रील गौर किशोर दास बाबाजी महाराज जी अपने हस्ताक्षर भी ठीक से नहीं कर सकते थे।                                                                                                           एक बार कुछ व्यक्तियों ने एक प्रसिद्ध भागवत की व्याख्या करने वाले पाठक की महिमा बाबा जी को सुनाई। बाबाजी महाराज तो अन्तर्यामी थे, वे उस पाठक के पैसे के बदले पाठ करने के उद्देश्य को जान गये और उन्होंने कहा, 'वह भागवत शास्त्र की गोस्वामी शास्त्र की तरह व्याख्या

नहीं करता है। वह तो हमेशा इन्द्रिय-तर्पण शास्त्र की व्याख्या करता है । वह 'गौर' 'गौर', 'कृष्ण' 'कृष्ण', का कीर्तन नहीं करता है, वह तो केवल 'पैसा' 'पैसा' ही कहता रहता है। यह कभी भी भजन नहीं है। ऐसा करने से तो वास्तविक वैष्णव धर्म ढक रहा है। उपकार के स्थान पर जगत् का अनिष्ट ही हो रहा है।    

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