बुधवार, 4 नवंबर 2015

इस प्रकार राधा कुण्ड प्रकट हुआ।

एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर को मारा। उस दिन जब आप श्रीमती राधा जी से मिलने गये तो श्रीमती राधाजी ने मिलने से मना कर दिया क्योंकि उनके अनुसार श्रीकृष्ण ने एक बैल को मारा था, चाहे वो एक दैत्य ही क्यों न था? बैल को मारने के कारण वे अपवित्र हो गये थे। अतः जब तक श्रीकृष्ण सभी तीर्थों के जल में स्नान नहीं कर लेते, तब तक वे अपवित्र ही रहेंगे।
भगवान श्रीकृष्ण यह सुन कर हँस पड़े। भगवान ने जैसे ही अपने चरणों से पृथ्वी को दबाया, तभी सारे तीर्थों का जल लिये एक कुण्ड वहाँ प्रकट हो गया। श्रीमती राधा व उनकी सखियों के विश्वास के लिये सारे तीर्थ सभी के सामने श्रीकृष्ण को अपना-अपना परिचय देकर उनका पूजन करने लगे। 

भगवान ने फिर उस में स्नान किया।

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात को यह घटना हुई।

इस प्रकार श्याम कुण्ड प्रकाशित हुआ।

जब श्रीकृष्ण ने सखियों सहित श्रीमती राधा जी से कुछ मज़ाक में कहा तो वे सब एक अन्य कुण्ड की खुदाई करने लगीं। देखते ही देखते वहाँ एक और सरोवर खुद गया, किन्तु उसमें जल नहीं था। यह देख सभी गोपियाँ चिन्तित हो गयीं। 

तब श्रीकृष्ण ने फिर मज़ाक में कहा - मेरे कुण्ड का जल ले लो और अपना सरोवर भर लो। 

गोपियों ने कहा - वृषासुर को मारने से जो पाप हुआ, उसे इस कुण्ड में धोया होने के कारण, इस का जल पवित्र नहीं रहा। हम मानसी गंग़ा से जल लेकर आयेंगीं। 
तब श्रीकृष्ण के ईशारे पर सभी तीर्थ श्रीमती राधाजी के आगे खड़े होकर उनका स्तव करने लगे।  श्रीमती राधाजी के हामी भरते ही, श्याम कुण्ड का जल बड़ी तेजी से राधा-कुण्ड की ओर उछला। उससे राधा-कुण्ड भी भर गया।

इस प्रकार राधा कुण्ड प्रकट हुआ।

भजन स्थानों में श्रीराधा कुण्ड हि सर्वश्रेष्ठ है।

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