मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

.............पहले गुरु पूजा करनी चाहिये उसके बाद.................

बात उन दिनों की है जब भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी अपने भाई श्रीनित्यानन्द जी के साथ बंगाल के मायापुर में भक्तों के साथ हरिनाम संकीर्तन करते थे। आपके एक भक्त थे श्री मुरारि गुप्त। एक बार श्री मुरारि गुप्तजी श्रीवासजी के घर पर गये। वहाँ पर श्रीचैतन्य महाप्रभुजी अपने बहुत सारे भक्तों के साथ बैठे थे। श्रीमुरारि गुप्तजी ने श्रीचैतन्य महाप्रभु जी को प्रणाम किया और फिर श्रीनित्यान्द प्रभुजी को। तब श्रीचैतन्य महाप्रभुजी ने उनसे कहा - यह ठीक नहीं है।
 श्रीमुरारिगुप्तजी इस बात का अर्थ नहीं समझ पाये। रात्री में जब वे सो गये तो स्वप्न में देखते हैं कि श्रीनित्यानन्द प्रभु जगद्-गुरु श्रीबलराम हैं और श्रीमहाप्रभुजी नन्दनन्दन श्रीकृष्ण के रूप में उन पर पंखा कर रहे हैं।
 
अगले दिन श्रीमुरारि गुप्तजी फिर श्रीवासजी के यहाँ गये तो पहले उन्होंने श्रीनित्यान्द प्रभुजी को और फिर श्रीचैतन्य महाप्रभुजी को प्रणाम किया।

जिस तरह से नित्यानन्दजी बलरामजी के अवतार हैं और श्रीचैतन्य महाप्रभुजी नन्द-नन्दन श्रीकृष्ण हैं, श्रीगौर गणोदेश दीपिका ग्रन्थ के अनुसार मुरारि गुप्तजी भी हनुमानजी के अवतार हैं।   चूंकि श्रीमुरारि गुप्त जी भक्त की लीला कर रहे हैं व एक उपासक हैं अतः हम  लोगों को शिक्षा देने के लिये श्रीमहाप्रभु जी ने श्री मुरारि गुप्तजी के माध्यम से यह सन्देश दिया की उपासक को पहले गुरु पूजा करनी चाहिये उसके बाद भगवान की पूजा करनी  चाहिये।

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