शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

देखते ही देखते वह कन्या नवजात कन्या के रूप में बदल गयी

भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के प्रिय पार्षद श्रीवास पण्डित जी वास्तव में श्रीनारद गोस्वामी जी के अवतार हैं। 

श्रीवास पण्डित जी ने एक बार बताया कि श्रीअद्वैत प्रभु जी श्रीहरि के अभिन्न अंग हैं। जीवों के कल्याण के लिये ही आप पृथ्वी पर आये हैं। आपकी पत्नी श्रीमती सीता देवी जी योगमाया हैं व प्राकृत जन्म से रहित हैं। अर्थात श्रीमती सीता देवी का जन्म साधारण बच्चों जैसे नहीं हुआ था।

श्रीमती सीता देवी जी के पिताजी श्रीनृसिंह भादुड़ी जी नारायण पुर में रहते थे। आप भगवान नारायण के भक्त थे व प्रतिदिन भगवान की पूजा करते थे।


आप के गाँव के पास के बावड़ी (तालाब) था जो कमल के फूलों से भरा रहता था। एक दिन भगवान की पूजा के लिये आप कमल लेने गये। जब आपने उस बावड़ी में प्रवेश किया तो आपने वहाँ एक अद्भुत कमल देखा जिसके 100 पंख थे। उसमें एक कन्या थी। उसका आकार हाथ के अँगूठे जितना था। चार भुजा लिये, कमल के आभूषणों से सजी थी।

अद्भुत नज़ारा देख आप असमंजस में थे। आपको पता ही नहीं लगा की कब आपने उस विशाल कमल को तोड़ा व घर ले आये। भगवान की इच्छा से आपकी पत्नी ने उसी दिन एक अन्य कन्या को जन्म दिया था।

पत्नी ने अद्भुत बालिका को देखा व  कहा कि अगर यह कन्या भाव से हमारे पास रहे तो इसकी बड़ी दया होगी। देखते ही देखते वह कन्या नवजात कन्या के रूप में बदल गयी।सबको यही लगा की श्रीनृसिंह जी के यहाँ दो कन्यायों का जन्म हुआ है।

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