

एक बार ऐसे ही आप व्रज-मण्डल का भ्रमण कर रहे थे। घूमते-घूमते आप व्रज-मण्डल के खदिर वन में आए। वहाँ छत्रवन के समीप उमराओ गाँव है। वहाँ पर श्रीकिशोरी कुण्ड है। आपको वहाँ आकर बड़ा अच्छा लगा और आपको भगवान की लीलायों का स्मरण हो आया।
जैसे ही इच्छा हुई, तत्क्षण, भगवान स्वयं वहाँ आये, आपको विग्रह (मूर्ति) दिये व कहा कि ये 'राधा-विनोद' हैं। इतना कह कर भगवान अदृश्य हो गये।
आप विग्रहों को ऐसे अचानक आया देख कर हैरान रह गये। जब होश सम्भाला तो चिन्ता करने लगे कि इन विग्रहों को कौन दे गया है?
तब श्रीराधा-विनोद जी के विग्रह हँसे व आप पर मधुर नज़र डालते हुये बोले - मैं इसी उमराओ गाँव के किशोरी कुण्ड के किनारे रहता हूँ। तुम्हारी व्यकुलता देखकर मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आया हूँ -- मुझे और कौन लायेगा? अब मुझे भूख लगी है। शीघ्र भोजन खिलाओ।
यह सुनकर आप के दोनों नेत्रों से आँसु बहने लगे। तब आपने स्वयं खाना बनाकर, श्रीराधा-विनोद जी को परितृप्ति के साथ भोजन कराया व बाद में पुष्प शैया बनाकर उनको सुलाया। नये पत्तों द्वारा आपने ठाकुर को हवा की व मन लगाकर ठाकुर के चरणों की सेवा की। आपने तब मन और प्राण भगवान के चरणों में समर्पित कर दिये।
श्रीलोकनाथ गोस्वामी जी द्वारा सेवित श्रीराधा-विनोद जी के विग्रह आजकाल वृन्दावन के श्रीगोकुलानन्द मन्दिर में सेवित होते हैं।

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