श्रीराम चरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं,
' भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥'
अर्थात् दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गयी। नेत्रों को आनन्द देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर, वे अपनी चारों भुजाओं में शंख, सुदर्शन चक्र, गदा तथा दिव्य कमल को धारण किये हुए थे। आभूषण और वनमाला पहने हुए थे । इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए। बाद में माताजी के निवेदन करने पर आप, भगवान, बालक रूप में परिवर्तित हो गये।
जिन्होंने श्रीमद्भागवत पढ़ी है, वे जानते होंगे कि प्राकट्य के समय भगवान श्रीकृष्ण जब माता देवकी व वसुदेव जी के सामने आये तो वे चार भुजा धारी, आयुध लिये, आभूषण पहने, हुए थे। बाद में उन्होंने माता-पिता के निवेदन पर बालक रूप लिया था।
क्या ऐसा कभी सामान्य बालक के जनम पर होता है?
अपनी अचिन्य शक्ति के प्रभाव से आप ये कार्य बड़ी ही सरलता से कर सकते हैं।
जब भगवान प्रकट होते हैं तो उस समय सारा ब्रह्माण्ड सतोगुण, सौन्दर्य तथा शान्ति से युक्त हो जाता है। सभी नक्षत्र व ग्रह शान्त हो जाते हैं। सारी दिशाएँ अत्यन्त सुहावनी लगने लगती हैं। नगरों, ग्रामों, खानों तथा चरागाहों से अलंकृत पृथ्वी सर्व-कल्याणप्रद प्रतीत होने लगती है।
निर्मल जल से युक्त नदियाँ प्रवाहित होने लगतीं हैं। सरोवर तथा जलाशय कमलों तथा कुमुदिनियों से पूर्ण हो जाते हैं। वृक्ष -- फूलों से व पत्तियों से पूर्ण हो जाते हैं। निर्मल सुगन्धित मन्द-मन्द हवा बहने लगती है। सभी के हृदय में अद्भुत आनन्द हिलोरे लेने लगता है। सभी ओर शुभ ही शुभ दिखता है। ……ऐसा होता है भगवान का अविर्भाव काल।
निर्मल जल से युक्त नदियाँ प्रवाहित होने लगतीं हैं। सरोवर तथा जलाशय कमलों तथा कुमुदिनियों से पूर्ण हो जाते हैं। वृक्ष -- फूलों से व पत्तियों से पूर्ण हो जाते हैं। निर्मल सुगन्धित मन्द-मन्द हवा बहने लगती है। सभी के हृदय में अद्भुत आनन्द हिलोरे लेने लगता है। सभी ओर शुभ ही शुभ दिखता है। ……ऐसा होता है भगवान का अविर्भाव काल।
अत: भगवान की भगवत्ता को समझना चाहिए ।
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