सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

How to see Lord Krishna?

मुण्डोक उपनिषद में लिखा है 'भक्तिरेवेनं दर्श्यति' ……अर्थात् भगवान की भक्ति ही भगवान का दर्शन करवाती है।

श्रीमद् भागवत में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं -- 'भक्तयाह्म एक्या ग्राह्यम् ' अर्थात् भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भक्ति ही एकमात्र ऐसी साधना है जिससे मुझको प्राप्त किया जा सकता है।

श्रीमद् भगवद् गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कई जगह पर ऐसा ही कहा है।

भक्ति का अर्थ सेवा होता है।

अथवा दूसरों को प्रसन्न करना होता है।

जैसे माता-पिता को प्रसन्न करना, माता-पिता की सेवा करना, माता-पिता की भक्ति कहलाती है।  गुरुजी को प्रसन्न करना, या गुरुजी की सेवा करना, गुरु-भक्ति कहलाती है, इसी प्रकार भगवान को प्रसन्न करने की चेष्टा करना, भगवान की सेवा करना, भगवान की भक्ति कहलाती है।
जगद्-गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद के बहुत सुन्दर लिखा है -- 'Don't try to see God....but work in such a way that God will want to see you.…अर्थात् हमें ऐसे कार्य करने चाहियें, सद्-गुरु के आनुगत्य में, जिससे भगवान हमसे मिलने के लिये उतावले रहें।

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