
प्राचीन काल में उतथ्य नामक ॠषि की परमप्रियतमा 'ममता' नाम की एक पत्नी थी। उतथ्य के छोटे भाई देवताओं के पुरोहित वृहस्पति थे। उस समय उतथ्य पुत्र ने 'ममता' के गर्भ में रहकर षड्ंग वेदों का अध्ययन किया था। किसी बात पर विवाद होने पर वृहस्पति जी ने क्रोधित होकर उतथ्य-पुत्र को शाप प्रदान किया कि 'तुम अन्धे हो जाओ'।
'लोकमर्यादा की स्थापना के लिए नारी पूरा जीवन एकमात्र पति के आश्रित रहेगी। वह पति चाहे जीवित हो या मर जाये, तब भी वह किसी और पति का आश्रय नहीं ले सकेगी।'
ब्राह्मणी ने पति के वाक्य से कुपित होकर पुत्रों की सहायता से अपने उस बूढ़े और अंधे पति को गंगा में बहा दिया। विप्र गंगा में बहते-बहते धार्मिक, श्रेष्ठ-राजा बलि के राज्य में पहुँचे तो बलि उन्हें अपने महल में ले आए और उनकी बहुत सेवा की। ॠषि के प्रसन्न होने पर, राजा ने पुत्र-प्राप्ति के लिए प्रार्थना की।
दीर्घतमा के मान जाने पर राजा ने राजमहिषी को ॠषि से कृपा-प्रार्थना हेतु ॠषि के पास जाने के लिए कहा किन्तु महारानी ने खुद न जाकर दासी को भेज दिया। ॠषि की कृपा से उसी दासी के गर्भ से काक्षीवढ़ आदि पुत्रों का जन्म हुआ। पुत्रों को अध्ययनशील देख राजा ने उनका अपने पुत्र होने का दावा कर दिया।महर्षि ने राजा से कहा - 'पुत्र आपके नहीं हैं। उन्होंने शूद्र की योनि से जन्म ग्रहण किया है।'
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तब महाराज बलि ने अत्यन्त दुःखी हुए और कृपा-प्रार्थना करने लगे। तब ॠषि ने प्रसन्न होकर उनकी पत्नी सुदेष्णा को आशीर्वाद दिया। ॠषि के द्वारा दिये गये आशिर्वाद से सुदेष्णा ने सूर्य के समान तेजस्वी पाँच पुत्रों को जन्म दिया। पुत्रों के नाम थे - अंग, बंग, कलिंग, पुण्ड और सूक्ष्म। पृथ्वी पर उन पुत्रों के अपने-अपने नाम से एक-एक देश प्रसिद्ध हो गया। अंग के नाम से अंग देश, बंग के नाम से बंगदेश, कलिंग के नाम से कलिंग देश, पुण्ड के नाम से पुण्ड देश एवं सूक्ष्म के नाम से सूक्ष्मदेश प्रसिद्ध हुआ।
इसके अतिरिक्त और भी कई पराक्रमशाली, परम-धर्मज्ञ व महाधनुर्धारी अनेक क्षत्रियों ने ब्राह्मणों की कृपा से जन्म ग्रहण किया था।
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