सोमवार, 15 सितंबर 2014

नियम छोड़ने की बात भूलकर भी न कहना

भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के प्रिय भक्त, श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी प्रतिदिन भगवान को एक हज़ार प्रणाम करते थे व वैष्णवों का नाम ले-लेकर व उन्हें याद करते हुये दो हज़ार प्रणाम करते थे।

भोजन के नाम पर केवल एक छटांक या आधा पाव छाछ पीकर जीवन यापन करते थे।

राधा-कुण्ड के अति पावन जल में तीनों समय स्नान करते थे। लगातार श्रीराधाकृष्णजी की मानसी सेवा करते रहते थे व प्रतिदिन एक लाख हरिनाम-जप करते थे।

ऐसा वर्णन आता है कि वृद्धावस्था के कारण जब आपका शरीर शिथिल हो
गया, तब भी आपने दण्डवत् आदि के नियमों में शिथिलता नहीं आने दी। परिणाम यह हुआ कि जब आप दण्डवत् करते तो आपसे उठा नहीं जाता था। 

आपकी यह दशा देखकर वैष्णवों व वृजवासियों को बड़ा तरस आता और वे आपसे बहुत अनुरोध कि अब आप अपना दण्डवत् प्रणाम का नियम छोड़ दीजिए या कम कर दीजिये।

लोगों का अनुरोध सुनकर श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी अत्यन्त दीन होकर कहते - भैया! यदि आप लोगों को मुझ पर ऐसा भाव है तो जब मैं दण्डवत् करूँ और मुझसे उठा न जाये तो आप लोग कृपा करके मुझे उठाकर खड़ा कर दिया करें, परन्तु नियम छोड़ने या घटाने की बात भूलकर भी मत कहियेगा।

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