हमारे सनातन धर्म की संस्कृति में हर प्रधान वस्तु का अधिष्ठात्री देवी-देवता होते हैं जिसके कारण उस वस्तु का संरक्षण होता है क्योंकि बिना चेतन के अचेतन वस्तु का संरक्षण नहीं हो पाता। ठीक उसी प्रकार जैसे आत्मा के बिना अचेतन शरीर अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रहता। जबकी दूसरी ओर आत्मा के रहने पर वर्षों तक शरीर सिर्फ़ सुरक्षित ही नहीं रहता बल्कि उस में कई तरह के परिवर्तन भी देखे जाते
हैं।हमारे देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्रीजगदीश बसु ने प्रमाणित किया है कि पेड़-पौधों में भी आत्मा होती है। आत्मा के निकल जाने पर पेड़ - पौधों की भी मृत्यु देखी जाती है। हमारे ग्रन्थों में अनेको प्रमाण हैं जहाँ पर पहाड़ के रूप में हिमालय ने अगस्त्य ॠषि से बात की थी। गोवर्धन पर्वत ने पुलस्त्य मुनि से बात की थी। लंका की ओर जाते हुये हनुमान जी से मेनाक पर्वत ने बातचीत की थी। यमुना जी ने श्रीकृष्ण से बातचीत की। भक्त रविदास की दमड़ी को लेने के लिये व प्रसाद के रूप में रविदास जी को अपना कंगन भेंट करने के लिये गंगा जी ने रविदास जी के भक्तों से बात की। रामेश्वरम पुल के बाँधने से पहले समुद्र देव ने प्रकट होकर श्रीराम जी से बातचीत की।


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