बुधवार, 2 जुलाई 2014

ये काम-बीज मन्त्र और काम-गायत्री क्या होता है?

हमारे सनातन धर्म की संस्कृति में हर प्रधान वस्तु का अधिष्ठात्री देवी-देवता होते हैं जिसके कारण उस वस्तु का संरक्षण होता है क्योंकि बिना चेतन के अचेतन वस्तु का संरक्षण नहीं हो पाता। ठीक उसी प्रकार जैसे आत्मा के बिना अचेतन शरीर अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रहता। जबकी दूसरी ओर आत्मा के रहने पर वर्षों तक शरीर सिर्फ़ सुरक्षित ही नहीं रहता बल्कि उस में कई तरह के परिवर्तन भी देखे जाते
हैं।
हमारे देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्रीजगदीश बसु ने प्रमाणित किया है कि पेड़-पौधों में भी आत्मा होती है। आत्मा के निकल जाने पर पेड़ - पौधों की भी मृत्यु देखी जाती है। हमारे ग्रन्थों में अनेको प्रमाण हैं जहाँ पर पहाड़ के रूप में हिमालय ने अगस्त्य ॠषि से बात की थी। गोवर्धन पर्वत ने पुलस्त्य मुनि से बात की थी। लंका की ओर जाते हुये हनुमान जी से मेनाक पर्वत ने बातचीत की थी। यमुना जी ने श्रीकृष्ण से बातचीत की। भक्त रविदास की दमड़ी को लेने के लिये व प्रसाद के रूप में रविदास जी को अपना कंगन भेंट करने के लिये गंगा जी ने रविदास जी के भक्तों से बात की। रामेश्वरम पुल के बाँधने से पहले समुद्र देव ने प्रकट होकर श्रीराम जी से बातचीत की।

हमारे सनातन धर्म के ग्रन्थों के अनुसार कामना - वासनाओं का एक अधिष्ठात्री देवता है जिसे हम काम-देव कहते हैं जिन्हें एक बार शिवजी महाराज जी ने भस्म कर दिया था और वे अंग-हीन हो गये थे। तब से उनका नाम अनंग पड़ा। काम-देव जी को अनंग कहा जाता है या मदन कहा जाता है जबकि श्रीकृष्ण जी को अनंग-मोहन व मदन-मोहन आदि नामों से पुकारा जाता है। क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण की सुन्दरता के आगे सारी सुन्दरतायें फीकी पड़ जाती हैं। यहाँ तक की काम-देव भी श्रीकृष्ण का सौन्दर्य देखकर मोहित हो जाते हैं।

तमाम कामना- वासनाओं से मुक्त होने के लिये व भगवान के दिव्य सौन्दर्य की ओर आकर्षित होने के लिए हमारे आचार्यों ने हमें जो मन्त्र प्रदान किये हैं उनमें से एक मन्त्र है काम-गायत्री। इसके अलावा काम-गायत्री का जो बीज-मन्त्र है उसे, काम-बीज या कृष्ण-मन्त्र कहा जाता है। हमारे गौड़ीय मठ या इस्कान में जब सद्-गुरु अपने उपयुक्त शिष्यों को दीक्षा प्रदान करते हैं तो वे अन्य मन्त्रों के साथ इन दोनों मन्त्रों को भी प्रदान करते हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें