मंगलवार, 6 मई 2014

जब आप चिता से उठकर पुनः मठ में चले आये

श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के प्रिय पार्षद श्रीवक्रेश्वर पण्डित के शिष्य थे श्रीगोपाल गुरु गोस्वामी जी। आप श्री काशी मिश्र जी का निवास स्थान, जो गम्भीरा के नाम से प्रसिद्ध है, उसमें भगवान श्रीराधाकान्त जी की सेवा करते थे। आपकी अपूर्व नाम-निष्ठा देखकर ही श्रीमहाप्रभु जी ने आपको 'गुरु' की उपाधि से विभूषित किया था।  

आप की जब वृद्धावस्था आ गई तब श्रीमहाप्रभु जी ने स्वप्न में आकर, आपको श्रीराधाकान्त जी की सेवा के लिए,  श्रीध्यान चन्द्र गोस्वामी को नियुक्त करने का आदेश दिया ।
बहुत समय के बाद जब आपने शरीर छोड़ा, उस समय आपको श्मशान ले जाया गया। अभी सभी लोग वहाँ पहुँचे ही थे कि राधाकान्त मठ पर राजकर्मचारियों ने कब्ज़ा कर लिया।

श्रीध्यानचन्द्र जी को सेवा से वन्चित होता जान श्रीगोपालगुरु जिवित हो चिता से उठकर पुनः मठ में चले आये । राजपुरुष इस अलौकिक घटना को पहले से ही जान गये थे, और श्रीगोपाल-गुरु के आने से पहले ही श्रीराधा-कान्त जी का मन्दिर खोल कर वहाँ से भाग गये।   और राजविधि के अनुसार मठ का सेवा-भार श्रीध्यानचन्द्र को अपने हाथों सौंप दिया, फिर शरीर त्यागा।
मरणोपरान्त बहुत दिन पीछे पुरी से आये भक्तों ने वृन्दावन में वंशीवट पर आपको भजन करते हुए बैठे देखा। जब पुरी में श्रीध्यानचन्द्र जी को पता लगा तो वे दौड़े-दौड़े वृन्दावन आये और आपके चरणों में गिर पड़े। तब आपने अपनी मूर्ति स्थापन करने का आदेश देकर उन्हें पुरी भेज दिया।

श्रीध्यानचन्द्र गोस्वामी जी की जय !!!!!

श्रीगोपाल गुरु गोस्वामी जी की जय !!!

श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की जय !!!

भगवान राधा-कान्त जी की जय !!!!!

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