हरे कृष्ण महामन्त्र अथवा श्रीहरिनाम के जप करने वाले का ही कल्याण होता है जबकि उच्च- स्वर से हरिनाम - संकीर्तन के द्वारा अपना तो कल्याण होता ही है, साथ ही साथ उन प्राणियों का व वृक्ष-लताओं का भी कल्याण हो जाता है, जो संकीर्तन को श्रवण करते हैं।
जैसे एक आदमी कमाता है और अपना भरण-पोषण करता है और दूसरा कोई व्यक्ति कमाता है और समाज के दस व्यक्तियों का भरण-पोषण करता है। अब आप ही विचार करें कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है?
यही सम्बन्ध जपकारी और कीर्तनकारी में है। जप अपने लिए होता है और
कीर्तन से लाखों प्राणियों का कल्याण होता है।
श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने सब को यही उपदेश दिया --' तुम लोग निरन्तर श्रीकृष्ण के नाम, गुण व धाम आदि की महिमा का कीर्तन और श्रवण करो। इसके अतिरिक्त न कोई दूसरी बात बोलो न सुनो। विशेषतः कलिकाल में श्रीकृष्ण - नाम व महामन्त्र का ही श्रवण और कीर्तन करना चाहिए। यदि पूछो कि महामन्त्र किसे कहते हैं, तो सुनो - हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे,
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यही कलियुग का महामंत्र है। श्रद्धापूर्वक नियमानुसार संख्या रखकर इस महामन्त्र का जप करना। इससे सभी स्तर के लोगों की समस्त कामनाएँ पूरी हो जायेंगीं। इसमें और बात यह है कि इसको करने की कोई विधि नहीं है अर्थात् इसे कभी भी -- बैठते,
उठते, चलते, फिरते, कर सकते हैं। सब समय हरिनाम करो। दस-पाँच व्यक्ति एक साथ मिलकर अपने - अपने घरों में हाथ की ताली बजा-बजाकर उसका कीर्तन करो।'
इस महामन्त्र का मानस जप हो सकता हि, उपांशु जप किया जा सकता है, और ज़ोर-ज़ोर से कीर्तन भी किया जा सकता है ।
नारदीय पुराण में वर्णन है कि हरिनाम जप करने वाले की अपेक्षा ज़ोर-ज़ोर से हरिनाम कीर्तन करने वाला सौ गुण श्रेष्ठ है क्योंकि जपकारी केवल अपने को पवित्र करता है, किन्तु ज़ोर-ज़ोर से उच्चारणकारी अपने को तो पवित्र करता ही है, साथ ही सुनने वालों को भी पवित्र कर देता है ।

-- जगद्गुरु नित्यलीला प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद् भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद ।
श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद की जय !!!!
आपके आविर्भाव तिथि पूजा महा-महोत्सव की जय !!!!!
जैसे एक आदमी कमाता है और अपना भरण-पोषण करता है और दूसरा कोई व्यक्ति कमाता है और समाज के दस व्यक्तियों का भरण-पोषण करता है। अब आप ही विचार करें कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है?
यही सम्बन्ध जपकारी और कीर्तनकारी में है। जप अपने लिए होता है और
कीर्तन से लाखों प्राणियों का कल्याण होता है।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यही कलियुग का महामंत्र है। श्रद्धापूर्वक नियमानुसार संख्या रखकर इस महामन्त्र का जप करना। इससे सभी स्तर के लोगों की समस्त कामनाएँ पूरी हो जायेंगीं। इसमें और बात यह है कि इसको करने की कोई विधि नहीं है अर्थात् इसे कभी भी -- बैठते,
उठते, चलते, फिरते, कर सकते हैं। सब समय हरिनाम करो। दस-पाँच व्यक्ति एक साथ मिलकर अपने - अपने घरों में हाथ की ताली बजा-बजाकर उसका कीर्तन करो।'

नारदीय पुराण में वर्णन है कि हरिनाम जप करने वाले की अपेक्षा ज़ोर-ज़ोर से हरिनाम कीर्तन करने वाला सौ गुण श्रेष्ठ है क्योंकि जपकारी केवल अपने को पवित्र करता है, किन्तु ज़ोर-ज़ोर से उच्चारणकारी अपने को तो पवित्र करता ही है, साथ ही सुनने वालों को भी पवित्र कर देता है ।

-- जगद्गुरु नित्यलीला प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद 108 श्रीश्रीमद् भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद ।
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