प्रचार, प्रचार के लिए नहीं होता। ये प्रचार क्षणिक दुनियावी फायदों के लिए नहीं है।
परम-मंगलमय भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा से हम जहाँ भी जाएँ या रहें, हमें भजन करना चाहिए।
हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य है, भगवान की भक्ति की प्राप्ति ।
उसे हमें नहीं भूलना चाहिए। सब कुछ इस संसार में ही रह जाएगा, हमारे साथ कुछ नहीं जाएगा।
हमारे साथ केवल श्रीकृष्ण की भक्ति ही जाएगी।

अतः दुनियावी क्षणिक लाभों के लिए शाश्वत लाभों को बलिदान करना बुद्धिमता नहीं होगी। वैष्णवों के पाद्-पद्मों में अपराध ही कृष्ण-भक्ति की सबसे बड़ी बाधा है। हमें सदैव भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं का स्मरण करना चाहिए।
यदि हम प्रचार, केवल प्रचार के लिए ही करेंगे तो मेरे विचार में भक्ति-पथ में उन्नती करने के लिए यह लाभदायक नहीं होगा।

श्रीकृष्ण एवं उनके भक्तों की प्रसन्नता के लिए कीर्तन सहित, हर प्रकार का भजन करना बुद्धिमता का कार्य होगा। श्रीकृष्ण की महिमा, उनके नाम, रूप, गुण व लीला की महिमा को कहना (अर्थात् श्रीकृष्ण की महिमा कीर्तन करना) भक्ति का सर्वोत्तम अंग है। कीर्तन-भक्ति करने से प्रचार स्वतः हो जाएगा। इसके लिए अलग से प्रयास करने की कोई आवश्यकता नहीं है । ----श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी।
परम-मंगलमय भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा से हम जहाँ भी जाएँ या रहें, हमें भजन करना चाहिए।
उसे हमें नहीं भूलना चाहिए। सब कुछ इस संसार में ही रह जाएगा, हमारे साथ कुछ नहीं जाएगा।
हमारे साथ केवल श्रीकृष्ण की भक्ति ही जाएगी।




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