श्रीरामेश्वर महादेव की जय !
भगवान विष्णु के अवतार हैं - मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम । तथा शिव जी के अवतार हैं श्रीहनुमान जी। भगवान हर समय अपने भक्ति की महिमा बड़ाते रहते हैं । इसलिए उन्होंने लंका विजय के समय श्रीरामेश्वरम की पूजा की।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी ने एक साधारण मनुष्य की लीला की, जिसे लंका पहुँचने के लिए विशाल समुद्र के पार जाना है और इसलिए श्रीशिव की पूजा कर उनसे उस कार्य के लिए शक्ति मांगी।
भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने इस कार्य के लिये श्री रामेश्ववर महादेव नामक लिंग की स्थापना की और उनकी पूजा की। लीला-अभिनय के लिए आप ने ऐसा विचार किया कि श्रीशिव जी की कृपा से मैं इस सागर को पार कर लूँगा।
वास्तविकता यह है कि श्रीरामचन्द्र जी स्वयं इतने शक्तिशाली हैं कि इच्छामात्र से ही आप समुद्र के पार जा सकते हैं। किन्तु एक साधारण मनुष्य ऐसी स्थिति में कैसा करेगा, आप उसका अभिनय कर रहे थे।
आम तौर पर लोग 'रामेश्वर महादेव' का अर्थे समझते हैं -- राम जी के स्वामी महादेव। देवताओं ने जब वहाँ प्रकट होकर यह घोषणा की कि 'रामेश्वर महादेव व रामचन्द्र एक ही हैं। उनमें कोई अन्तर नहीं है । दोनों ही ईश्वर हैं।
तभी श्रीशिव जी महाराज उस लिंग में से प्रकट हो गये और बोले, 'नहीं । सत्य तत्त्व को समझो। रामेश्वर का सही अर्थ है , 'राम जिनके ईश्वर ईश्वर हैं'… अतः श्रीराम ही मेरे स्वामी हैं।'




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