भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद् भगवद् गीता में कहते हैं (4/16) ,'कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इसका निर्णय करने में बुद्धिमान भी मोहित हैं। इसलिए मैं तुम्हारे लिए अब उस कर्मतत्त्व का वर्णन करुँगा जिसे जानकर सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाओगे।' वास्तव में लोगों को ठीक से पता नहीं के कर्म क्या है और अकर्म क्या है? यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण इंगित करते हैं कि बड़े-बड़े विद्वान तक कर्म के विषय में मोहग्रस्त हैं। यह जानना आवश्यक है कि कौन से कार्य सही हैं, और कौन से नहीं, कौन से प्रामाणिक हैं और कौन से नहीं, कौन से वर्जित हैं और कौन से नहीं। यदि हम कर्म के सिद्धान्त को समझ लें तो भवबन्धन से मुक्त हो सकते हैं। -- श्रील ए॰ सी॰ भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज जी।



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