आपके आशीर्वचन:
1) द्वापर युग में जरासन्ध आदि राजागण वेदों की बात को मानकर श्रीविष्णु को तो भगवान् के रूप में पूजते थे, परन्तु श्रीकृष्ण को नहीं मानते थे। इसलिए उनकी गिनती असुरों में की गई है। 2) जो जन श्रीकृष्ण-भक्ति तो करते हैं परन्तु श्रीचैतन्य महाप्रभु की भगवत्ता को स्विकार नहीं करते, उन पर श्रीकृष्ण कभी भी कृपा नहीं करते हैं। 3) श्रीचैतन्य महाप्रभु जी स्वतन्त्र भगवान् हैं और अत्यन्त उदार हैं। उनके भजन बिना कलियुग के जीवों का कभी भी उद्धार नहीं हो सकता। 4) भक्त की कृपा के बिना शब्दब्रह्म स्वरूप श्रीमद्भागवत की और परब्रह्म स्वरूप भगवान् की कृपा की प्राप्ति नहीं हो सकती।
1) द्वापर युग में जरासन्ध आदि राजागण वेदों की बात को मानकर श्रीविष्णु को तो भगवान् के रूप में पूजते थे, परन्तु श्रीकृष्ण को नहीं मानते थे। इसलिए उनकी गिनती असुरों में की गई है। 2) जो जन श्रीकृष्ण-भक्ति तो करते हैं परन्तु श्रीचैतन्य महाप्रभु की भगवत्ता को स्विकार नहीं करते, उन पर श्रीकृष्ण कभी भी कृपा नहीं करते हैं। 3) श्रीचैतन्य महाप्रभु जी स्वतन्त्र भगवान् हैं और अत्यन्त उदार हैं। उनके भजन बिना कलियुग के जीवों का कभी भी उद्धार नहीं हो सकता। 4) भक्त की कृपा के बिना शब्दब्रह्म स्वरूप श्रीमद्भागवत की और परब्रह्म स्वरूप भगवान् की कृपा की प्राप्ति नहीं हो सकती।
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