किसी व्यक्ति की फेथ (श्रद्धा) हिन्दु से बौद्ध, बौद्ध से क्रिस्तानी या मुस्लिम में बदल सकती है। लोगों में सामर्थ्य है कि वे कोई एक फेथ (श्रद्धा) स्वीकार करें और दूसरी का परित्याग कर दें, किन्तु धर्म बदला नहीं जा सकता। यह तो प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति (स्वभाव) है कि वह अपनी , अपने परिवार, अपने समाज, राष्ट्र या मानवता की सेवा करे। यह सेवाभाव जीवात्मा से कभी विलग नहीं हो सकता और इसी से प्रत्येक जीवात्मा के धर्म की सृष्टि होती है। बिना सेवा-भाव के किसी का अस्तित्व सम्भव नहीं । यह संसार इसलिये चल रहा है, क्योंकि हम सेवा का आदान-प्रदान करते रहते हैं। हमें भूल जाना चाहिये कि हम क्रिस्तानीं हैं अथवा मुस्लिम या कि हिन्दु। हमें तो यह समझना चाहिये कि हम जीव हैं जिसकी वैधानिक स्थिति यह है कि वह परम जीवात्मा की सेवा करे। जब हम में यह समझ आ जाती है, तो हम मुक्त हो जाते हैं। - श्रील ए सी भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज जी।

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