बुधवार, 25 सितंबर 2013

आशीर्वचन

जितना पाप प्राणियों की हिंसा करने से होता है, उससे सौ गुणा पाप वैष्णव-निन्दा से होता है। जो श्रीविग्रह (मूर्ति) की तो श्रद्धा से पूजा करे, परन्तु भक्त का आदर न करे, तथा मूर्ख, नीच और पतितजनों पर दया न करे । प्रभु में तथा उनके अवतार में जो भेद-भाव रखे । एक अवतार को भजे, पर दूसरे को न भजे, श्रीकृष्ण तथा श्रीराम में भेद का व्यवहार करे तथा बलराम और शिवजी के प्रति भक्ति भाव न रखे। ऐसे सब लोगों को भी शास्त्र में 'अधम-भक्त' कहा गया है। - श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज ।

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